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व्याख्यान-तेरहवाँ -
१०३. हमको क्या लाभ ? इसलिये हम अपने द्रव्य से ही पूजा.: करेंगे। एक नौकर के पास दो रुपये थे। उनके पुष्प लेकर वे अति भावपूर्वक प्रभु की पुष्प पूजा करता है ! दूसरे नौकर के पास कुछ नहीं था इसलिये दुखी होकर देखता रहा था। पूजा करके शेठ शेठानी उपाश्रय आये। वहां गुरु महाराज को वंदन करके शेठ शेठानीने उपवास. का पच्चक्खाण लिया। तब इस नौकरने पूछा कि हमारे शेठानीने क्या किया? गुरु महाराजने कहा कि आज चौदश है इसलिये तुम्हारे शेठने उपवास किया है। नौकरने पूछा उपवास का क्या मतलब है ? गुरु महाराजने समझाया कि-एक दिन और रात का आहार त्याग करना। उसमें भी रात को तो आहार पानी दोनो का त्याग करना उसका नाम उपवाल । यह सुनकर के जिसके पला नहीं थे वह नौकर विचार करने लगा कि मेरे पास द्रव्य नहीं था इसलिये मैं पूजा नहीं कर सका। और यह तो बिना द्रव्य के हो सकता है एसा है। सव घर आते हैं। भोजन का समय होते ही दोनो नौकरों को जीमने के लिये भोजन की थाली आयी। एक नौकर जीमने लगता है। वहां दूसरा लौकर विचार करने लगा कि मेरे तो आज उपवास है। यह भोजन मेरे लिये ही आया होने से इसका मालिक मैं हूं। इसलिये अगर कोई सुपात्र आवे तो यहोरा कर के लाभ लेलं ।
. इतने में एक महात्मा वहोरने को पधारे। इस नौकरने । - अपने लिये आये हुये भोजन को महात्मा को वहोरा दिया। यह देखकर शेठानीने उसे दूसरा भोजन दिया। तव नौकरने कहा कि मेरे तो उपवास है । यह सुनकर शेठ शेठानी प्रसन्न हुये । . दो रुपये के पुष्प लेकर भगवान की पूजाकरने वाला'