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प्रवचनसार कर्णिका खाने पीने में जो मुक्ति मानता है वह मिथ्यात्वी है। खाने पीने की तमाम वस्तु जिन मन्दिर में रखनी चाहिये। अपने द्रव्य से धर्म करने वाले जीवों को लाभ पूर्ण मिलता है।
एक नगर में अभयंकर नाम के शेठ थे। उनके दो नौकर थे । एक नौकर घर का कचरा वगैरह सफाई का काम करता था और दूसरा नौकर हौर चराने जाता था। शेठ शेठानी धर्मी होने से रोज सगवान की पूजा करने के लिये जिन मन्दिर जाते थे। ये भी पूरे आडंबर से जाते थे । एक दिन नौकर बैठे बैठे बातें करते थे। अपने शेठ शेठानी कितने पुन्यशाली है कि रोज प्रभुती पूजा करने जाते हैं। अपन को भी मन तो बहुत होता है लेकिन अपन तो नौकर कहलाते हैं इसलिये अपन से कैसे जाया. जा सकता है?
इन दोनोंकी वात शेक और शेठानीने सुन ली। दूसरे दिनके प्रातःकाल शेट-शेठानीने आशा दी कि आज तुम दोनों हमारे साथ पूजा करने को आना। यह आज्ञा सुन करके तो दोनों नौकर आश्चर्य करने लगे और विचार करने लगे कि रातकी बात सुनकर अगर गुस्साले कहते होंगे और अगर नौकरी में से निकाल दिया तो? इस तरह अनेक विचारो से दोनो जने शेठ शेठानी के साथ पूजा करने गये। वहां वहुत से धनिक पूजा करने आये थे । सवको अपने द्रव्य से पूजा करता देखकर ये दोनो विचार करने लगे कि पूजा तो स्वद्रव्य से ही होना चाहिये । शेठ नौकरों को पूजा करने के लिये केसर की कटोरी देता है । तब दोनों नौकर लेने को ना कहते हैं। और कहते हैं कि हे शेठ! आपके द्रव्य से पूजा करें तो