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व्याख्यान-आठवाँ :
दूसरों को ठगने के लिये वैरागी बने हुए, और लोगों को खुश करने के लिये धर्मोपदेश देनेवाले भी दुनिया में मिल सकते हैं । धर्मोपदेश किसीको प्रसन्न करनेके लिये नहीं देना है किन्तु दूसरों को धर्म प्राप्त कराने के लिये: देना है।
जगत में कार्मण वर्गणा के पुदगल लूंस ठूस के भरे हुए हैं। जिस तरहसे पानी से भरे हुए एक कुंडमें नौका को रखी जाय । परन्तु जो नौका छिद्रवाली हो तो उस छिद्र के द्वारा पानी नौकामें प्रवेश करके नौका को डूवो देता है उसी तरह असंख्य प्रदेशी आत्मा में मिथ्यात्व,. अविरति, कषाय और योग स्वरूप छिद्रोमें कार्मण वर्गणा. के पुद्गल प्रवेश करके आत्मा को संसार कुण्ड में डूबो देते हैं । .. एक मनुष्य के शरीरमें खूब पसीना आया हो तो उस समय शरीर के ऊपर धूल चिपक जाती है। उसी तरह से अगर रागद्वेष रूपी चिकास आत्मामें प्रवर्तती हो तो कर्म उसको चोंट (चिपक जाते हैं। . .. इसलिये रागद्वेष को दूर करने का प्रयत्न करो । ' ज्यों ज्यों धर्मः अनुष्ठान किये जाते हैं त्यों त्यों रागद्वेष कम होना चाहिये। आत्मा के साथ चिपके हुये कर्मों को दूर करने के लिये तपं-जप-संयमादि अनुष्ठान हैं ।
एक लाख नवकार मन्त्र का जाप शुद्ध विधि से किया ... जाय तो तीर्थकर नाम कर्म बंधता है। .. . ... आचारांग सूत्रकार' कहते हैं कि दुःख का विचार
· नहीं कर । परन्तुं दुःख सहनशीलता सीख । । . . .. गंज सुकुमाल मुनिके सिर पर उनके सुसर सोमिलने