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प्रवचनसार कर्णिका
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जब तत्व के विचार आत्मा के साथ चलते हैं तब कर्मकी निर्जरा होती है।
साधु आहार करता है फिर भी तपस्वी कहलाता. है। क्यों कि साधु पेट भरने के लिये याहार नहीं करता . किन्तु संयम की आराधना के लिये करता है। तप करते हुए केवलज्ञान होता है और किसीको आहार करते करते। भी केवलज्ञान हो जाता है। जैसे करगडु सुनि गतव में वांधे हुए अन्तराय कर्स के उदय से इस भवमें कुछ भी तपश्चर्या कर सकते नहीं थे, और संवत्सरी के दिन भी "मैं खा रहा हूँ" एसा पश्चात्ताप करते करते आहार करने पर भी उनको केवलज्ञान हो गया था । - आत्मा विचार करे कि संसार छोड़ने जैसा है, लेकिन । छोड़ नहीं सकती है । शादी करे किन्तु शादी करके भी प्रसन्न न हो । उदासीन वृत्ति ले लग्न करे और कब ये ... भोगावली कर्म टूटे और में संयमी वन एसी भावना से औपधि की पुडिया की तरह भोग भोगे पसे जीवको अल्प कर्म बंधते हैं। - गुणसागर ने चौरीमें आठ कन्याओं के साथ पाणि . ग्रहण किया। फिर भी शादी करते करते विचार करते हैं कि माता-पिताके अति आग्रहके कारण मैं शादी करने ... को तो वैठा हूं, परंतु आठों को वोध देकर के इनको भी तारुं । इस प्रकार का ध्यान करते करते गुणसागर-क्षपक . श्रेणी. चढते हैं और केवलज्ञान प्राप्त करते हैं। परभवमें आराधना की थी इसी लिये जल्दी से मोक्ष चले गये । इसी तरहसे अगर अपन भी सुन्दर आराधना करें तो भवान्तर में मोक्ष मिल सकता है। . . . . .