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व्याख्यान-छट्ठा ... (९) शरीर की शोभा टापटीप नहीं करना चाहिये।
मनुष्यभव चले जाने के वाद अनन्तकालमें भी मिलना मुश्किल है। इसलिये जितना वने उतना जीवन में धर्म . कर लेना चाहिये। .. बहु आरंभ-समारंभी, परिग्रही और रौद्रध्यानी नरक - में जाता है। गूढ हृदयवाला, शठ; शल्यवाला जीव तियेच
गतिमें जाता है । अल्प कपायवाला, दान रुचिवाला और मध्यम गुणवान मनुष्यगतिमें जाता है। अविरति सम्यग्दृष्टि आदि, वाल तपसी और अकाम निर्जरावाला देवगति में जाता है। . दिनमें एक घण्टा अथवा दो घण्टे मौन रखो यह भी
तप है। मूंगा मनुष्य बोल नहीं सकता है इसलिये मौन ... रहता है किन्तु तप नहीं कहा जा सकता है । .
... कंदमूल वुद्धि को मलिन करनेवाला होता है, और दुर्गति में ले जानेवाला है इसलिये कंदमूल को त्यागो। - साधुपना तलवार की धारके ऊपर चलने के समान है और लोहेके चना चवाने जैसा है और रेतके कौलिया
करने जैसा कठिन है। ... संसार के हरेक जीव स्वार्थ से भरे हुए हैं। तुम्हें
तुम्हारे मामा, काका, फुवा आदि कोई सगे मिलें तव तुम
सबसे पहले उनसे क्या पूछोगे? तुम्हारा शरीर कैसा है ? .. ऐसा ही पूछोगे ना? तुमने किसी दिन ऐसा भी पूछा .
कि तुम्हारे आत्मा को कैसा है ? शरीर का खोखा तो यहीं रह जानेवाला है उसका इतना मोह क्यों ?
. जो श्रावक-श्राविका श्रावक के बारह व्रत अंगीकार .. करते हैं वे साधुधर्मी कहलाते हैं और जो श्रावक श्राविका