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प्रवचनसार कर्णिका
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'श्री महावीर ने कहा कि हे इन्द्र, इस जगत में क्षण भी “आयुष्य वढाने की ताकत किसी में भी नहीं है।
दुनिया में दुखी बहुत और सुखी कम । इसका कारण ... यह है कि दुनिया में धर्म थोड़ा है और पाप बहुत है। .
आयुष्य कर्म बेडी के समान है। जिस तरह जेलमें वेडी में जकडा हुआ कैदी मुदत पूरी होने के पहले न . ही छूट सकता है। उसी तरह जीव भी आयुष्य पूर्ण होने के पहले भवमें से नहीं छूट सकता है।
धर्मी अर्थात् मोक्ष का मुसाफिर । जिस तरह . मुसाफिरी कर करके थके हुये मनुष्य को घर जाने की तीव्र उत्कंटा होती है। उसी तरह संसार की मुसाफिर ले. ‘थके हुये कंटाले हुये जीवको अपने स्थायी शाश्वत स्थान रूप मोक्षघर जल्दी पहुंचने की उत्कंठा होती है।
व्यसन सात हैं। (१) जुआ (२) मांसभक्षण (३) शराव पीना (४) वेश्यागमन (५) शिकार (६) चोरी और (७) परस्त्रीगमन । ये सात व्यसन जीवन में नहीं होना चाहिये।
अहमदावाद में शीवाभाई सत्यवादी हो गये। उनका युवान पुत्र एकाएक मर गया । पुत्रवधू खूब रोने लगी । तव शीवाभाई ने उससे कहा कि आयुष्य पूर्ण होने ले मेरा पुत्र मृत्यु को प्राप्त हुआ है । वह रोने से कहीं . पीछे आनेवाला नहीं है । इसलिये रोना वन्द करके इस 'तिजोरी की चावी लो । आज से घर के मालिक तुम । 'घर के दरवाजे के पास एक द्वारपाल को खड़ा कर दिया। "वैठने के लिये आनेवालों से कह दिया गया कि यहां रोना बन्द है। घर के अन्दर जाजम बिछा दी। आगन्तुकों