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व्याख्यान-पहला
.... गर्भ और जन्मकी वेदना में तो हम सावधान नहीं रहे थे किन्तु नृत्यु के पहले अव तो सावधान होजाना अपने हाथकी बात है। जिसने जीवन में तप-जप नहीं किये वह मृत्युके समय समाधि नहीं प्राप्त कर सकता है।
- जिसका कोई वन्धु नहीं है उसका वन्धु धर्म है। जिसका कोई नाथ-स्वामी नहीं है उसका नाथ धर्म है। .. धर्म सारे संसारमें वात्सल्यभाव को भरनेवाला है। धर्मस्थान में जो शान्ति मिलती है वह शान्ति जगत के किसी भी स्थान में नह मिल सकती है।
.. आहारसंना, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा और परित्रह संज्ञा ये चार संज्ञायें तो जगत के जीवोंको अनादिकाल ले भूत. की तरह लगी हैं। यानी भूतकी तरह पीठ पकड़े पीछे. पीछे लगी हैं।
मोक्षमें इन चारमें से एक भी संज्ञा नहीं होती है। .. मोक्षका ज्ञान प्राप्त करने के लिये, हे भाग्यशाली भवि जीवो, तैयार हो जाओ, यही हमारी मनःकामना है। .
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