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व्याख्यान-तीसरा
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अपन को पाप लगता है । इस लिये शान्ति से क्रियायें __करना चाहिये।
संसार के अज्ञानी जीव अपनी चिन्ता नहीं करके दूसरों के दोष देखने में आनन्द मानते हैं।
वीतराग के धर्म पालन करने वाली आत्मा स्वयं • आरंभ-समारंभ नहीं करती है और दूसरे के पास कराती
भी नहीं है और जो करते हैं उनको अच्छा भी नहीं मानती है।
सिर्फ जैनकुल में जन्म लेने से नाम श्रावक कहलाते . हैं। छोटे बच्चे द्रव्य श्रावक कहलाते हैं। और श्रावक के वारह व्रतों में से जो थोड़े से भी व्रत पालते हैं वे . भाव श्रावक कहलाते हैं।
श्रावक सात क्षेत्रों में धन का सदुपयोग करते हैं । ...वे अपना यश फैले इसके लिये धन का उपयोग नहीं . : करते किन्तु धन की मूछी उतारने के लिये धन का __उपयोग करते हैं। ..... गृहस्थ तपाये हुये लोहे के गोला के समान होते हैं। क्यों कि जैसे तपाया हुआ गोला जिधर नमाना चाहो उधर नम जाता है। उसी तरह गृहस्थ के संसारी काम भी छहों कायों के जीवों की हिंसा करने वाले होते हैं। धर्मकथा के सिवाय गृहस्थ के साथ अधिक सम्बन्ध रखने वाला साधु भी दोष का भागीदार होता है। .. ..' साधु संसार की रामायण करने वाले नहीं होते हैं। "साधु में दो गुण होते हैं । " भीमकान्तः साधुः” अर्थात् साधु की एक आंख में भयंकरता होती है। और दूसरी