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~~... प्रथम अध्याय .
वाले है, उन से सब प्राणियो को सुख - शाति मिलती है। इसी तरह अधार्मिक जीवो का निर्वल होना अच्छा है, जिस से वहुत से जीव सताप से बचे रहेंगे। धार्मिक वृत्ति वाले व्यक्तियो को संवल होना अच्छा है । क्योकि वे अपनी ताकत से अनेक प्राणियो को सुख देगे ।
इसी तरह भगवान् महावीर से जमाली ने यह पूछा कि लोक नित्य है या अनित्य ६.? खधक ने पूछा कि लोक सान्त है या अनन्त है ? जीव की नित्यता - अनित्यता पर भी पूछा गया । इस तरह के और भी अनेक प्रश्न पूछे-गए, जिन का महावीर ने स्याद्वाद की भाषा मे उत्तर दिया। परन्तु बुद्ध ने इन प्रश्नो को अव्याकृत-कह कर टाल दिया। इसलिए बुद्ध का विभज्यवाद विस्तार नही पा सका। उन्होने लोक को नित्यता-अनित्यता, सान्तता-अनन्तता तथा जीव की नित्यता-अनित्यता जैसे गभीर एव महान् प्रश्नो का विभज्यवाद की भाषा मे उत्तर न देकर उनकी उपेक्षा कर-दी। परन्तु भगवान् महावीर ने किसी भी प्रश्न की उपेक्षा नहीं की। उन्होने जमाली के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा-जमाली । लोक शाश्वत-नित्य भी है और अशा श्वत-अनित्य भी। क्योकि वह सदा बना रहता है। अतीत, अनागत और वर्तमान तीनो कालो मे कोई भी ऐसा समय नही मिलता,जवकि लोक का अस्तित्व नही रहा हो या नही-रहेगा, इसलिए वह शाश्वतनित्य है । और लोक हमेशा एक रूप में स्थित नहीं रहता। अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी रूप काल चक्र , मे परिवर्तित होता रहता है,
* भगवती सूत्र १२, २,४४३ ।। $ भगवती सूत्र ८, ३३, ३६७।.. - भगवती सूत्र २,१८०/४।। + भगवती सूत्र ७, २, २७३ ।