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प्रश्नो के उत्तर annarramamman पदार्थो का समावेश हो जाता है।
इसमे भी मूल तत्त्व दो ही है- एक जीव और दूसरा अजीव या यो भी कह सकते हैं, एक जड और दूसरा चेतन । शेष सात तत्त्व इन्ही के अवान्तर भेद हैं। सभी पदार्थो का सरलता से वोध हो सके इसलिए तत्त्वो का वर्गीकरण किया गया है । अन्यथा विश्व का कोई भी ऐसा पदार्थ नहीं है, जो जड़-चेतन से पृथक् किसी तीसरी किस्म का हो। सभी पदार्थ चेतन या जड दो ही रूपो मे पाए जाते है।
आत्म मीमांसा भारतीय चिन्तनधारा का विकास प्रात्म तत्त्व को केन्द्र मान कर हुआ है। चार्वाक का विचार,चिन्तन-मनन एव सिद्धात भी इसमे वाधक नही है। चार्वाक दर्शन का गहराई से अनुशीलन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है, कि उसने आत्मा की चेतना शक्ति को मानने से इन्कार नही किया है किन्तु उसने सिर्फ चेतन के स्वरूप की व्याख्या अपने ढग से की है। उसने आस्तिक माने जाने वाले सभी भारतीय दर्शनो से विपरीत दिशा मे सोचा है । उसे नास्तिक एव अनात्मवादी कहने का यही कारण है कि उसने आत्मा को चेतन तो माना है, परन्तु उस चेतन (आत्मा) की स्वतत्र एव पृथक सत्ता को नहीं माना । इस तरह सभी भारतीय दर्शन प्रात्मा को आधार मानकर चले है । अत प्रत्येक भारतीय के लिए यह आवश्यक है कि वह आत्मा के सवध मे भी सोचेसमझे एव जाने। इस विचार को सामने रखते हुए हम जरा विस्तार से भारतीय दर्शनो की आत्मा विषयक मान्यता पर प्रकाश डालने का प्रयत्न करेंगे।
किसी वस्तु के स्वरूप का परिज्ञान करने के पहले उसके