Book Title: Prashno Ke Uttar Part 1
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 360
________________ ३३७ अष्टम अध्याय बहुत से स्थानो पर नात्मा के सबंध में प्रश्न करने पर बुद्ध मौन रहे हैं। इस तरह मौन रहने का कारण पूछने पर उन्होने कहायदि मैं कहता हूँ कि आत्मा है तो शाश्वतवादी हो जाता है और आत्मा नही है ऐसा कहता हू तो उच्छेदवादो हो जाता हू । अत. दोनो का निराकरण करने के लिए मौन रहता हू । ६ __इस तरह हम देखते है कि बुद्ध ने आत्मा के मबध मे कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं किया है । नागार्जुन ने कहा है- "बुद्ध ने यह भी कहा है कि आत्मा है और यह भी कहा है कि प्रात्मा नही है । अतः बुद्ध ने आत्मा या अनात्मा किसी का भी उपदेश नही दिया। जैन दर्शन जैनागमो मे यत्र तत्र-सर्वत्र दार्शनिक एव आध्यात्मिक चिन्तनमनम की सामग्री व्यवस्थित रूप में उपलब्ध होती है । जैनदर्शन स्याद्वाद की नीव पर स्थित है । भगवान महावीर ने बुद्ध की तरह किसी भी प्रश्न को टालने का प्रयत्न नहीं किया। उन्होने आत्मा, परमात्मा, किं नु भो गोतम अत्थत्ताति, एव वुत्ते भगवा तण्ही अहोसि। . किं पन भो गोतम नत्यत्ताति.दुतिय पि खो भगवा तुण्ही अहोसि ॥ -सयुत्तनिकाय, ४, १०० ६ अस्तीति शाश्वतग्राहो नास्तित्युच्छेददर्शन । तस्मादस्तित्वनास्तित्वे नाश्रीयेत विचक्षण, ।। -माध्यमिक कारिका,१८,१० . । आत्मेत्यपि प्रज्ञपितमनात्मेत्यपि देशत । दुद्धनीत्मा न चानात्मा कश्चिदित्यपि देशित IL . -माध्यमिक कारिका, १९,६ .

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