Book Title: Prashno Ke Uttar Part 1
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 358
________________ ३३५ ...... अष्टम अध्याय को छोड़कर चेतना अलग वस्तु नही मानी जाती। ___ बौद्ध साहित्य मे प्रात्मा के सबध मे चार तरह की विचारधाराए मिलती हैं-- १-रूप, वेदना, सज्ञा, संस्कार और विज्ञान इन पांच स्कन्धो के अतिरिक्त आत्मा कोई स्वतन्त्र पदार्थ नही है। २-पाच स्कंधों के अतिरिक्त आत्मा एक स्वतन्त्र पदार्थ है। ३-आत्मा का अस्तित्व तो है, परन्तु इसे 'न अस्ति' कह सकते हैं और 'नास्ति' ही। ४-आत्मा है या नही है, यह कहना असभव है। . प्रथम मान्यता का उल्लेख मिलिन्दपण्ह मे मिलिन्द और नागसेन के प्रश्नोत्तर के रूप मे मिलता है। इसमे नागसेन स्पष्ट कर देता है, पुद्गल-मात्मा की स्वतन्त्र उपलब्धि नही होती है । ६ वह पाच स्कन्धो का समूह रूप ही है । जैसे रथ के पहिए, धुरे तथा रथ मे लगे हुए डड प्रादि रथ हैं ? नहीं। और क्या इन सब से पृथक रथ का अस्तित्व है ? नहीं । पहिए, धुरे डडे आदि के संयुक्त रूप को व्यवहार मे रथ कहते हैं। उसी तरह रूप-वेदना आदि के संगठित रूप को आत्मा कहते हैं। *, - ... + चेतनाह भिखवेकम्मति वदामि। -अंगुत्तर निकाय,३,४५ कम्म विपाका वन्ति विपाको कम्मसंभवो, कम्मा पुनव्भवा होति एव लोको पवत्तति । कम्मस्स कारको नत्यि विपाकस्स च । वेदको,सुधम्मा पवत्तन्ति,एवेत सम्मदस्सन । -विसुद्धिमग्ग,प्र १९ $ पुग्गलो नुपलव्मति । -मिलिन्द पण्ह * मिलिन्दपण्ह, अ २, विसुद्धिमग्ग, अ १६, कत्थावत्यु, १,२. अभिधर्म

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