Book Title: Prashno Ke Uttar Part 1
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 380
________________ ३५७ नवम अध्याय मान को सर्वथा प्रमाण नहीं मानने की घोषणा करना उन्मत्त प्रलाप मात्र है । चार्वाक आगम प्रमाण को भी नही मानते, वे उसे सर्वथा अप्रमाणिक मानते हैं | परन्तु, अनेक परोक्ष वातो को सिद्ध करने के लिए वे उनका सहारा भी लेने हैं। जैसे- अमुक युग मे अमुक व्यक्ति हुआ था या हमारे दादा परदादा आदि ऐसे वीर या दानी या सच्चरित्रवान श्रादि थे, जब हम यह कहते हैं तो हम इन्हे न तो प्रत्यक्ष मे देखते है भोर न देख ही सकते हैं, फिर भी इतिहास एवं अपने पिता, दादा श्रादि के वचनो पर विश्वास रख कर उन घटनाओ को सत्य मानते है। यदि किसी के दादा ने किसी को एक हजार रुपया उधार दिया है, हम ने तो उसे उधार देते वक्त देखा नही, परन्तु बही मे लिखा है, तो क्या उस लिखावट के आधार पर हम उस हिसाब को सही नही मानेगे ? क्यो नही । उसे अवश्य हो सही मानेगे और उसके आधार पर रुपये वसूल करेंगे । यही बात आगम के संबध मे है । श्रागम प्राप्त पुरुषो की वाणी है और प्राप्त पुरुष वे हैं, जो राग-द्वेष के विजेता है | श्रत उनकी वाणी मे असत्यता एव परस्पर विरोध नहीं होता । इस लिए वे अपने दिव्य ज्ञान मे जो देखते है वही आगम के रूप मे हमारे सामने सुरक्षित है । जैसे- बाप-दादे द्वारा प्रत्यक्ष मे देखी गई बात उन की लिखावट के आधार पर सत्य मानी जाती है- चार्वाक भी इमे सत्य मानता है, इसी तरह सर्वज्ञ पुरुषो के दिव्य ज्ञान से प्रत्यक्ष किए हुए स्वरूप को असत्य मानना केवल बुद्धि का अजीर्ण है । अत. ग्रागम प्रमाण को नहीं मानना चार्वाक का हठ ही है। इसे नही मानने क पीछे कोई ठोस तर्क एव प्रमाण नहीं है । 1 *T AAAAAA THEX

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