Book Title: Prashno Ke Uttar Part 1
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 373
________________ जैन दर्शन और चार्वाक दर्शन . , नवम अध्याय प्रश्न- भारतीय दर्शनों में चार्वाक नास्तिक दर्शन माना गया हैं। चैदिक दार्शनिकों ने चार्वाक की तरह जैन दर्शन को भी नास्तिक दर्शन कहा है। अतः यह स्पष्ट करें कि चावकि एवं जैन दर्शन में क्या अन्तर है ? . उत्तर- आस्तिक-नास्तिकवाद प्रकरण में हम विस्तार से बता चुके हैं कि जैन दर्शन नास्तिक दर्शन नही,ग्रास्तिक दर्शन है। उसे नास्तिक दर्शन कहना केवल सांप्रदायिक व्यामोह मात्र है। यदि वेद को प्रमाण न मानने मात्र से ही कोई दर्जन नास्तिक हो जाता हो, तव सास्य दर्शन को भी नास्तिक दर्शन मानना होगा। क्योकि जनो को तरह वह भी वेद को ईश्वर कृत एव प्रमाण रूप नहीं मानता। और शंकराचार्य वेद को प्रमाण रूप मानता है, फिर भी वैदिक पुराणो मे उसे नास्तिक कहा है । इससे स्पष्ट होता है कि नास्तिक आस्तिक का ६ मायावादी वेदान्ती (गकराचार्य) अपि नास्तिक एव पर्यवसाने नेपद्यते इति नेयम् । मत्र प्रमाणानि साख्य प्रवचन योदाहृत नि पद्मपुराण वचनानि यथा मायावादमसच्यास्त्र प्रच्छन्न बौद्धमेव च । - मयंव कथित देविकलो ब्राह्मणरुपिणा ।। -

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