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प्रश्नो के उत्तर
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की सुन्दरता के कारण भी उन्हे चार्वाक कहते हैं । इन का प्रावरण सामान्य लोगो की तरह होता है, इन मे सयम,एवं तप का प्रभाव होता है। साधारण लोगो की तरह भोगो मे आसक्त रहने के कारण इन्हे लोकायत या लोकायतिक भी कहते हैं । चार्वाक पुण्य-पाप को नही मानते और उनके फल स्वरूप मिलने वाले नरक स्वर्ग को भी नही मानते, इसलिए इन्हे नास्तिक भी कहते हैं ।।
चार्वाक भौतिकवादी दर्शन है । वह मानता है कि सृष्टि मे पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश ये पांच मूल तत्त्व है । इन्ही से -सृष्टि का निर्माण होता है। पाचो तत्त्वो के सम्मिलन से आत्मा की उत्पत्ति होती है । और उसके विनाश के साथ आत्मा का भी विनाश हो जाता है । अत, चार्वाक दर्शन की मान्यता है कि ससार मे प्रास्मा नाम की कोई स्वतन्त्र शक्ति नही है। उसका अस्तित्व तभी तक रहता है, जब तक पचभूतो का अथवा शरीर का अस्तित्व रहता है : शरीर के नाश के साथ आत्मा का भी विनाश हो जाता है। इसलिए दुनिया मे जो कुछ है, वह यह मनुष्य लोक ही है । इसके अतिरिक्त
* चारुलोकसम्मतः वाक: वाक्य यस्स सः चार्वाकः। -वाचस्पत्यकोश।
* लोकाः निर्विचारा. सामान्यलोकस्तद्वदाचरन्ति स्मेति लोकायता लोकायतिका।
-गुणरत्न मूरि। + नास्ति पुण्यं पापमिति मतिरस्य नास्तिकः। --आचार्य हेमचंद्र ६ मति पचमहन्भूया, इहमेगेसिमाहिया ।
पुढवि, पाउ, तेउ वा वाउ मागास पचमा ।। एस पच महन्भूया, तेब्यो एगोत्ति आहिया । प्रह तेसि विणासेण, विणासो होइ देहिणो।
सूत्रकृतांग, १,१,१, ७.८ ।