Book Title: Prashno Ke Uttar Part 1
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 377
________________ प्रश्नों के उत्तर ૬૪ को मात्म द्रव्य की अपेक्षा से नित्य माना गया है । यह सत्य है कि उसके गुणो मे परिवर्तन अवश्य होता है, उनको पर्याय प्रतिक्षण वदलती रहती है । जैसे ज्ञान एवं दर्शन आत्मा के गुण हैं । श्रात्मा में अनन्त ज्ञान एव अनन्त दर्शन स्थित है । प्रत्येक प्रात्मा ज्ञान एवं दर्शन की सत्ता लिए हुए हैं । यह बात अलग है कि समारी आत्माए ज्ञानावरण एवं दर्शनावरण कर्म के प्रावरण से प्रावृत्त होने के कारण उनका ज्ञान एव दर्शन पूर्णतः प्रकट नही हो पाता है । जितना-जितना कर्मों का क्षयोपशम होता है, उतना ही ज्ञान दर्शन का प्रत्यक्षीकरण होता है। ज्ञान और दर्शन के द्वारा आत्मा पदार्थों को जानता देखता है । पदार्थ पर्याय युक्त हैं और पर्याये सदा वदलती रहती हैं, इसलिए प्रत्येक पदार्थ पर्यायों की अपेक्षा से अनित्य है और ज्ञान एवं दशन से पदार्थों की पर्यायों का भी बोध होता है । श्रतः पर्यायो के परिवर्तन के · 2 J साथ उसका ज्ञान भी परिवर्तित होता रहता है। जैसे भगवान महावीर के समय नालन्दा आदि शहर थे और आज भी वे स्थान स्थित हैं । परन्तु, उस युग के नालन्दा एव आज के- नालन्दा की स्थिति में बहुत अन्तर आ गया है । इतने लम्बे काल की बात को छोड़िये, आजादि के पहले के भारतीय एव पाकिस्तानी सीमा मे स्थित शहरी को स्थिति एव आज को स्थिति मे कितना अन्तर आ गया है इस बात को प्रत्येक व्यक्ति भली-भांति जानता है। तो इस परिवर्तन के साथ हमारे ज्ञान एव दर्शन की अनुभूति मे भी परिवर्तन हो गया । ज्ञान और दर्शन ग्रात्मा के गुण हैं और गुण सदा गुगो मे रहते हैं । यतः ज्ञान-दर्शन ग्रात्मा से संबद्ध हैं और कभी भी आत्मा से अलग नही होते। उनके अस्तित्व के अभाव मे ग्रात्मा का अस्तित्व ही नहो रह पाता है । तो उनके परिवर्तन का अर्थ होता है आत्मा की पर्यायो wwwww

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