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प्रश्नों के उत्तर बौद्धो की दूसरी मान्यता है कि यात्मा ५ स्कन्धों में भिन्न पदार्थ है। यह मान्यता नयायिक प्रादि दार्शनिको जमी है। यहा पर पुदगलश्रात्मा को ५ स्कन्धो का बोझ ढोने वाली कहा गया है।
तीसरी मान्यता को मानने वाले पुदगलवादी वारसीनीय बौद्ध है । ये प्रात्मा के अस्तित्व को मानने हैं, परन्तु उसे न ५ कन्या में भिन्न कह सकते हैं वह । न अभिन्न और न नित्य है और न अनित्य हो। फिर भी यह पुद्गल-प्रात्मा अपने अच्छे-बुरे कमों का कर्ता और भोक्ता है, इसलिए इसके अस्तित्व का निषेध नही कर सकते।
चौथी मान्यता के अनुसार प्रात्मा अव्याकृत है । अनुराध के प्रश्न का उत्तर देते हुए तथागत बुद्ध ने कहा कि तुम जब इस लोक में जीव दिखाने में समर्थ नहीं हो. तो फिर परलोक की तो बात दूर रही। इसलिए मैं श्रात्मा के अस्तित्व-नास्तित्व के चक्कर में न पड़कर 'दु.ख और दुख निरोध' इन दो तत्वो का उपदेश करता है। जैसे तीर से पाहत व्यक्ति को- यह तीर किसने बनाया, किसने मारा, कव मारा, किस दशा से मारा, आदि प्रश्न करने व्यर्थ हैं। उसे इन व्यर्थ क प्रश्नों मे न उलझकर तोर के घाव की रक्षा की बात सोचनी चाहिए। इसी तरह प्रात्मा क्या है ? परलोक क्या है ? तथागत पैदा होते हैं या नहीं? ये सब प्रश्न व्यर्थ है, अव्याकृत हैं। कोग३,१८टीका, दीघनिकाय-पायामिमुत्त, संयुत्तनिकाय,५,१०,६॥
६ भार भो भिक्षवो देशयिष्यामि भारादानं भारनिक्षेप भारहार च । तत्र भार. पचोपादानस्कन्धा. भारादान तृप्ति, भारनिक्षेपो मोक्षः, भाराहार पुद्गला.। -तत्त्वसग्रह पजिका,मात्मवाद परीक्षा,३४९,धम्मपद का प्रत्तवग्गो।
* सयुत्तनिकाय, अनुराधमुत्त, अभिधर्मकोश,५,२२ टिप्पण ।
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