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- तृतीय अध्याय
मनुष्य, तिर्यश्व प्रादि विभिन्न नामो की रचना करता है। नाम कर्म के कई भेद हैं । नाम कर्म के भेद चार अपेक्षाओं से किए जाते हैं । एक अपेक्षा से ४२, दूसरी अपेक्षा से ९३, तीसरी अपेक्षा से १०३ और चौथी अपेक्षा से ६७ भेद किए गए हैं ।
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• ४२ भेद -- १ गति, २ जाति, ३ तनु-शरीर, ४ उपाग, ५ बन्धन, ६ सघातन, ७ सहनन, 5 सस्थान, ९ वर्ण, १० गन्ध, ११ रस, १२ स्पर्श, १३ श्रानुपूर्वी, और १४ विहायोगति ये चवदह पिड प्रकृतिया कहलाती हैं । १ पराघात नाम, २ उच्छ्वास नाम, ३ आतपः नाम, ४ उद्योत नाम, ५ ग्रगुरुलघु नाम, ६ तीर्थंकर नाम, -७ निर्माण नाम, ८ उपघात नाम, ये ग्राठ प्रत्येक प्रकृतियां कही जाती हैं । १ त्रस नाम, २ वादर नाम, ३ पर्याप्त नाम, ४ प्रत्येक नाम, ५ स्थिर नाम, ६ शुभ नाम, ७ सुभग नाम, ८ सुस्वर नाम, ९ आदेय नाम और १० यग कीर्ति नाम, इन दस प्रकृतियो को त्रस दशक कहते हैं । १ स्थावर नाम, २ सूक्ष्म नाम, ३ पर्याप्त नाम, ४ साधारण नाम, ५ अस्थिर नाम, ६ अशुभ नाम, ७ दुर्भग नाम, ८ दुस्वर नाम, ९ अनादेय नाम और १० अयश कीर्ति नाम । इन दस प्रकृतिया को स्थावर दशक कहते हैं । इस तरह नाम कर्म के १४+६+१०+ १० = ४२ भेद होते हैं ।
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९३ भेद - गति नाम कर्म के ४ भेद - १ नरक, २ तिर्यश्व, - मनुष्य और ४ देव । जाति नाम कर्म के ५ भेद - १ एकेन्द्रिय, २ द्वीन्द्रिय, ३ त्रीन्द्रिय, ४ चतुरिन्द्रय, ५ पचेन्द्रियः । शरीर नाम कर्म के ५ भेद - १ श्रदारिक, २ वैक्रिय, ३ ग्राहारक, ४ तेजस ओर ५ का मण शरीर । उपाग नाम कर्म के ३ भेद - १ ग्रौदारिक गोपाग नाम कर्म २ वैक्रिय अगोपांग नाम कर्म और ३ आहारक ग्रगोपाग नाम कर्म । वन्धन नाम कर्म के ५ भेद- १ श्रद्वारिक शरीर बन्धन नाम