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प्रश्नों के उत्तर
उल्लेख मिलता है । चतुर्याम--चार महाव्रत रूप धर्म भगवान पाश्वंनाथ के युग तक था। भगवान महावीर ने पञ्चयाम या पाच महाव्रत रूप धर्म का उपदेश दिया था। जिसमे उन्होने ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन दो महाव्रतो को अलग-अलग कर दिया था। वौद्ध पिटको मे पांच महाव्रतों का कही उल्लेख नहीं मिलता, यत्र-तत्र चार याम धर्म का उल्लेख मिलता है। और यह चार याम धर्म भगवान पार्श्वनाथ के समय तक था। और भगवान पार्श्वनाथ वुद्ध में पहले हुए हैं । और प्राय. सभी ऐतिहासिक विद्वान इस वात को मानते हैं कि बुद्ध ने पहले भगवान पार्श्वनाथ की परपरा मे दीक्षा स्वीकार की थी। उनके द्वारा स्वीकृत तप एव उस समय का उन का रहन-सहन इस बात को स्पष्ट वताता है कि पहले वे जैन धर्म की परपरा मे दीक्षित हुए थे। जो भी कुछ हो, जैनधर्म बौद्धधर्म की शाखा नही है । वह बौद्ध धर्म से भी प्राचीन है। और यह वात जैन और बौद्ध साघुरो के आचरण एवं सैद्धांतिक मान्यताओं से भी स्पष्ट हो जाती है।
जैन साधु . वौद्ध भिक्षु श्वेत वस्त्र पहनते है। कपाय रंग के वस्त्र पहनते हैं। पैदल घूमते हैं। किसी भी तरह बौद्ध भिक्षुयो के लिए सवारी में की सवारी का उपयोग नहीं बैठने का प्रतिवन्ध नहीं है । वे करते। .
खुले रूप मे सवारी करते हैं। धन-धान्य आदि परिग्रह नही आवश्यकतानुसार पैसा रखने या रखते और न किसी ने स्वीकार लेने का विधान है। वर्तमान काल ही करते हैं।
मे तो ये धन-सपति का संग्रह भी
करने लगे हैं। कच्ची सब्जी का स्पर्श कच्ची सब्जी तो क्या, मास खाने