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प्रश्नो के उत्तर .... ३०२ विश्वास नहीं है। जैनधर्म जगत को अनादि अनन्त मानता है। उस का कहना है कि इस जगत को ईश्वर या किसी अन्य देवी-देवता ने नही बनाया है। यह जगत पहले था, अब है। और भविष्य मे यह रहेगा। त्रिकालवर्ती इस जगत का न किसी ने निर्माण किया है और न कोई इस का विनाश कर सकता है। -
जैनधर्म का विश्वास है कि जो परमात्मा सासारिक प्रपचो से -मुक्त हो चुका है,वह पुन उन की खट-पट मे नही पड़ता है ? यदि यह मान लिया जाए कि परम दयालु परमात्मा ससार का सर्वेसर्वा है तो जीवो को दु.खी क्यो रखता है? क्यो नही सव जीवो को एकान्त सुखी बना डालता? किसी पिता का पुत्र नदी मे डूबता रहे और वह समर्थ होता हया भी यदि किनारे पर खडा देखता या ताकता रहे तो उसे पिता कहना चाहिए? वह पिता है या पुत्रघातक ?-ऐसे निर्दय व्यक्ति को जैसे पिता नहीं कहा जा सकता, ऐसे ही उसे परमात्मा नही कहा जा सकता जो संसार का सर्वेसर्वा होकर भी दु.खियो पर दया नही करता। फिर भी यदि उस ईश्वर को करुणा का सागर कहा जाए तो यह ईश्वर के ईश्वरत्व का उपहास नही तो और क्या है ?
जैनदष्टि से ईश्वर जगत का निर्माता नहीं है, भाग्यविधाता नही है, कर्मफल-प्रदाता नही है तथा अवतार लेकर ससार मे आता नही है । जैन दृष्टि से ईश्वर के सम्बन्ध मे प्रस्तुत पुस्तक के "ईश्वर मीमासा" नामक छठ अध्याय मे विशेष ऊहापोह किया जा चुका है। जिज्ञासुनो को वह स्थल देख लेना चाहिए।
जगत की महाप्रलय नहीं होती वैदिक धर्म का विश्वास है कि ससार मे जव प्रलय होती है, तब पर्वत, नदी, सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि सभी जीव