Book Title: Prashno Ke Uttar Part 1
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 327
________________ प्रश्नो के उत्तर .... ३०४ .. ~~~~ian ranr rrrrrrrrrr पुन जगत की उत्पत्ति कसे होगी ? प्रकृति का सिद्धांत है कि प्रत्येक पदार्थ अपने उपादान कारणों से ही उत्पन्न होता है, अन्य प्रकार से नही । जव उपादान कारण ही नष्ट हो गया तो तज्जन्य कार्य की उत्पत्ति कैसे हो सकती है। आप प्रतिदिन देखते हैं कि ग्राम के बीज से ही ग्राम्र का वृक्ष उत्पन्न होता है । जिस वीज से नीम का वृक्ष पंदा होता है उससे आम का पेड पंदा नही हो सकता इसी तरह सिंह जाति के जीव सिंह के वीर्य से ही उत्पन्न होते हैं, मनुष्य को पंदायश के लिए मनुष्य का ही वीर्य होना निहायत ज़रूरी है । इस प्रकार सभी गर्भज, अण्डज और वृक्ष आदि जीवो के शरीरो के उपादान कारण निश्चित हैं, अत. वे अपने उपादान कारण से तो उत्पन्न हो सकते हैं, परन्तु हज़ारो यत्न करने पर भी उपादान कारण मे भिन्न दूसरे पदार्थ से उनका शरीर नहीं बन सकता। ऐसी दशा मे प्रलयकाल मे मनुष्य, पश् आदि सबके समाप्त हो जाने पर मनुप्य, पशु, पक्षी आदि प्राणियो की उत्पत्ति नही हो सकेगी। जगत की सर्वथा प्रलय मान लेने पर ऐसी अनेको आपत्तिया और प्राशकाए उपस्थित होती है, जिनका कोई सन्तोषजनक समाधान नही मिलता। ' इसके अलावा प्रलय का समय सृष्टिकाल के बराबर चार अरव ३२ करोड़ वर्ष का बताया जाता है। यह किस हिसाब से और किस नियम के अनुसार बतलाया गया है? यह विचारणीय है। क्या ईश्वर ने सदा के लिए प्रलय और जगत का समय निश्चित कर रखा है ? या किसी ने ईश्वर पर ऐसा प्रतिवध लगा रखा है कि इसी तरह कार्य करते रहो? यदि ईश्वर पर किसी ने प्रतिबन्ध लगा रखा है तो प्रतिबन्धक ईश्वर से भी बडा होना चाहिए ? आदि ऐसे अन्य अनेको प्रश्न पैदा हो जाते है, जिनका कोई युक्तिसगत उत्तर प्राप्त नहीं होता।

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