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प्रश्नो के उत्तर
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हमारे मन मे पूर्वजन्म के पुत्रादि से धनादि प्राप्ति की इच्छा हो भी तो जैसे हमारी यह इच्छा पूर्ण नहीं हो पाती तो हमारे पितरो की
इच्छा कैसे पूर्ण हो सकती है? .. श्राद्ध से मृतक व्यक्तियो की इच्छा पूर्ण होती है, या तृप्ति होती है, यह बात सर्वथा असगत प्रतीत होती है। यदि गंभीरता से इस पर विचार किया जाए तो इस मे कुछ भी तथ्य मालूम नहीं पड़ता। यदि श्राद्ध को मान लिया जाए तो तैलाभाव से बुझा हुआ दीपक ब्राह्मण आदि को तैल देने से प्रज्वलित हो जाना चाहिए। परन्तु ऐसा होता नहीं है । $ बुझे हुए दीपक को जलाने के लिए ब्राह्मण को कितना भी तेल क्यों न दे दिया जाए पर उस से दुकान पर पड़ा दीपक कभी जल नही सकता । जव इसी ससार मे ब्राह्मण को दिया गया दान अपने इप्ट स्थान पर नही पहुच पाता तो भला वह परलोक मे पितरो को कैसे पहुंच सकता है ? - कल्पना करो, एक व्यक्ति मरुभूमि मे गया हुआ है । सब जानते हैं कि मरुभूमि मे पानी की बड़ी कमी होती है । इसलिए घर वालो ने सोचा कि उसको पानी पहुचाना चाहिए। पहुचाया कैसे जाए ? जब यह प्रश्न सामने पाया तो झट एक ब्राह्मण को बुलाया गया। जो ब्राह्मण पितरो को परलाक में भोजन पहुचा सकता है, वह मरुभूमि मे पानी चयो नही पहुंचाएगा? ऐसा सोच कर यदि कोई ब्राह्मण देवता को निमंत्रण दे और उसे पानी पिला दे तो क्या पानी मरुभूमि में स्थित मनुष्य को मिल जायगा ? उत्तर स्पष्ट है, कभी नहीं। ब्राह्मण द्वारा पीया गया पानी जव सौ या दो सौ मील पर भी नही पहुंच सक्ता, $ मृतानामपि जन्तूना, श्राद्ध चेत्तृप्तिकारणम् । तन्निर्वाणदीपन्य, स्नेहः संवर्वच्छिखाम् ।।