Book Title: Prashno Ke Uttar Part 1
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 351
________________ प्रश्नो के उत्तर 1 दिया। उनका यही कहना था कि " चरत्य भिखवो सत्र्वजनहिताय सव्वजनमुखाय " अर्थात् हे भिक्षुप्रो' सव लोगों के हित का एव सुख पहुचाने का प्रयत्न करो । परन्तु बुद्ध का यह उपदेश उनके जीवन काल तक ही रहा । उनको मृत्यु के बाद बौद्ध विद्वानो ने उनकी इच्छा के विपरीत उनके उपदेशो मे प्राए हुए कुछ सूत्रो को लेकर वौद्ध दर्शन को व्यवस्थित रूप दिया । जिस बात के लिए बुद्ध ने इन्कार किया था, उनके शिष्यों ने उसी का निरूपण किया। इस तरह बौद्ध दर्शन का आज जो व्यवस्थित रूप परिलक्षित हो रहा है, वह बुद्ध के बहुत वाद का है । " तथागत बुद्ध एक दार्शनिक एवं आध्यात्मिक चिन्तक नहीं थे । वे एक सन्त थे, करुणाशील एव दयालु पुरुष थे । आज की भाषा मे हम उन्हे जन नेता कह सकते हैं । वे धर्म के नाम पर यज्ञ मे मारे जाने वाले मूक पशुओ की चीत्कार, शूद्र पर होने वाले अत्याचार. नारी के तिरस्कार एवं निम्न श्रेणी के व्यक्तियो पर चलने वाले शोषण चक्र को देख कर दुखित थे । असहायों के प्रति उनके दिल मे करुणा थी पोर उसी के अनुरूप वे मानव को भौतिक दुःख से मुक्त करने मे प्रयत्नशील रहे । ३२८ 1 भगवान महावीर ने भी याज्ञिक हिंसा का छूत-अछूत के भेद का एवं शोषण का विरोध किया तथा नारी एव शूद्र को अपने सघ में बराबर का स्थान दिया और उन्हें भी मोक्ष प्राप्त करने का अधिकारी माना । परन्तु इतना होने पर भी महावीर की करुणा, दया एव अनुकम्पा की भावना केवल भौतिक देह एव वर्तमान जीवन तक ही सीमित नही रही। क्योकि उनके सामने इस जीवन के आगे का रास्ता

Loading...

Page Navigation
1 ... 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385