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प्रश्नो के उत्तर है, का उल्लेख किया गया है ।
राजमहल से भागने के बाद तथागत बुद्ध ने कुछ वर्ष तक जिस साधना, तपश्चर्या एव पाचरण का पालन किया, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि बुद्ध पहले निग्रंथ (जैन) परम्परा मे दीक्षित हुए थे। सारी पुत्र को अपने पूर्व जीवन की घटना सुनाते हुए उन्होने कहा कि मैंने केगलुचन किया था और इस क्रिया को चालू रखा था। * यह क्रिया जैन मुनियो के अतिरिक्त अन्य किसी सम्प्रदाय मे नही है । इस से यह वात विल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि जैनधर्म बौद्धधर्म का समकालोन नहीं, बल्कि उससे बहुत पहले से चला आ रहा था । अस्तु, इतने स्पष्ट प्रमाणो के उपलब्ध होते हुए भी यह कहना या मानना अक्षम्य भूल है कि जैनधर्म बौद्धधर्म की शाखा हया वौद्धधर्म का समकालीन है। प्रश्न- जैनदर्शन और बौद्ध दर्शन में दार्शनिक अंतर क्या है? उत्तर- भारत अध्यात्म चिन्तन प्रधान देश है। भारतीय विचारक श्रात्मा-परमात्मा, लोक-परलोक आदि के वास्तविक स्वरूप को जानने के लिए सदा प्रयत्नशील रहे है। अत भारतीय चिन्तक दार्शनिक के रूप में सामने आए और परिणामस्वरूप विभिन्न दर्शनों का निर्माण हुआ। जिनमे प्रत्येक दार्शनिक एव विचारक ने अपने चिन्तन को जनता के सामने रखा और अपनी बौद्धिक एव ताकिक गक्ति से आत्मा-परमात्मा एव अन्य तत्त्वो को व्याख्या को। ये व्याख्याए ही दर्शन शास्त्र के रूप मे आज हमारे सामने है।। * केस्स मरसुलोचको विहोमि, केसयस्सु लोचनानुयोगं अनुयुत्तो।
-मज्झिमनिकाय, महासीनादसुन,१२