Book Title: Prashno Ke Uttar Part 1
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 352
________________ ३२९ श्रष्टम श्रध्याय भी स्पष्ट था। वें लोक-परलोक के संबंध में बुद्ध की तरह अस्पष्ट नही थे । उन्होने आत्मा-परमात्मा, लोक की सान्तता, अनन्तता, शाश्वतता, शाश्वतता श्रादि प्रश्नो का यथार्थ उत्तर दिया । उनके मन मे किसी भी तत्त्व के लिए सन्देह नही था । उनके लिए दुनिया का कोई भी तत्त्व घुंधला नहीं था । प्रत . उन्होने प्रत्येक प्रश्न का वास्तविक समाघान किया। उन्होने किसी भी प्रश्न को अव्याकृत कह कर टालने का प्रयत्न नहीं किया । 7 भगवान महावीर का जीवन त्याग के प्रथम दिन से ही चिन्तन, मनन एव साधना प्रधान रहा है । साढ़े बारह वर्ष तक का समय उन्होने तप, ध्यान एवं अध्यात्म चिन्तन मे लगाया था और इतने लम्बे काल की कठोर साधना एवं उत्कट तप के बाद पूर्ण ज्ञान को प्राप्त किया। जिसके कारण लोक प्रलोक के सभी तत्त्व उनके सामने प्रत्यक्ष थे । इसलिए उनके उपदेश में करुणा, दया, अनुकम्पा श्रादि के साथ आध्यात्मिक एवं दार्शनिक चिन्तन की गहराई के भी स्पष्ट दर्शन होते है । उन्होने केवल इस जन्म के भौतिक दुःखों से ही छूटने की बात नही कही, प्रत्युत प्राध्यात्मिक दुःखो - राग-द्वेष, काम-क्रोध, मोह श्रादि से निवृत्त होने की बात भी कही । क्योकि, जब तक राग-द्वेष का क्षय नही होगा तब तक दुःखो का श्रात्यन्तिक नाश नही हो सकेगा । इसकी कारण यह है कि दुख कर्मजन्य है और कर्म का मूल बीज राग-द्वेष है | अतः दुःख से सर्वथा मुक्त - उन्मुक्त होने के लिए राग-द्वेषका त्याग करना अनिवार्य है । अतः हम कह सकते है कि बुद्ध एवं महावीर की दृष्टि मे इतना श्रतर है- बुद्ध जनता को भौतिक दुःखो से छुटकारा दिलाने एव शूद्र

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