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सप्तम अध्याय
लाने स परलोक वासी व्यक्ति के पास वह कैसे जा सकता है? वस्तुत. मृतात्मा के निमित्त किया जाने वाला कोई भी विधिविधान मृतात्मा को लाभ नही पहुचा सकता।
हां, यह सत्य है कि यदि कोई व्यक्ति मरकर देवता बन जाए, अवधिज्ञान से अपने परिवार को जान ले, उससे मोह रखे और अपनी मान प्रतिष्ठा के लिए परिवार वालो को दान-पुण्य के लिए मकेत करे, तो सकेतानुसार दान पुण्य करने से वह देव अपनी व्यक्तिगत कामना पूर्ण होने के कारण अवश्य सन्तुष्ट हो सकता है किन्तु प्रत्येक मृतात्मा को निमित्त बना कर दान-पुण्य करने से उसकी तृप्ति होती है, ऐसा सोचना ठीक नहीं हैं। क्योकि जो आत्मा मनुष्यलोक को छोड कर नरकगति मे, तिथंच गति या मनुष्य गति मे चला गया है, उन को पूर्व जन्म का कोई ज्ञान भी नही है, उसे पूर्वजन्म के परिवार से मानप्रतिष्ठा प्राप्त करने का भी कोई विचार नहीं है। अत उसके निमित्त किया गया दान उसके हर्प का कारण बन सकेगा,ऐसा नही हो सकता। देवता भी अवधि ज्ञानी होने से अपनी मान प्रतिष्ठा देख कर प्रसन्न होता है, उसके निमित्त गरीब, गौ, ब्राह्मण, कुत्ता, काक आदि प्राणियो को जो दान दिया है, वह देवता को पहुचता है ऐसी बात नही है। देव को निमित्त बना कर किसी को जो चाहे दान दे दे किन्तु उसमे से देव के पास कुछ नही पहुचता । देवता तो केवल अपनी मान प्रतिष्ठा होने के कारण ही संतुष्ट हो जाते हैं। . !
- अपुत्रस्य गतिनास्ति . वैदिक धर्म का विश्वास है कि जो- पुत्रहीन होकर व्यक्ति मर जाता है,उसकी गति नही होतो वह शुभगति को प्राप्त नहीं करता।
$ कोषकारो के मत मे मृत्यु के अनन्तर जीवात्मा की भली बुरी दशा का