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३२३..................... सप्तम अव्याय
जैनधर्म धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, गुणस्थान आदि ऐसे अनेकों तत्त्व मानता है जो वैदिक धर्म मे नही पाए जाते हैं । तथा जैन न्याय में भी स्याहाद, नय, निक्षेप आदि बहुत से ऐसे तत्त्व है, जो जेनेतर न्याय में नहीं हैं। __ यह सब भेद होते हुए भी दोनों वर्मों के अनुयायियो मे सास्कृतिक दृष्टि से एकरूपता दिखाई देती है और कुछ जातिया ऐसी है, जिन में दोनो धर्मों के अनुयायी पाए जाते हैं, और उनमे रोटी-बेटी का व्यवहार भी चालू है।