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षष्ठम अध्याय कौन देता है ? जीव को एक योनि से दूसरी योनि में कौन ले जाता है ? उत्तर- प्राकृतिक नियमो के अनुसार जीवों को जो शक्ति कर्मफल प्रदान करती है, उसे कार्मणशरीर कहते हैं । जैन दर्शन का विश्वास है कि दीपक जैसे बत्ती के द्वारा तेल को ग्रहण करके अपनी उष्णता से ज्वालारूप में परिणत कर देता है, बदल देता है, वैसे ही प्रात्मा काम, क्रोध, मोह, लोभ आदि विकारो से कर्म योग्य पुद्गलो को ग्रहण करके उन्हे कर्म रूप में परिणत कर लेता है । उन्ही कर्म पुद्गलो के समूह का नाम कार्मणशरीर है। यह कार्मणशरीर या कार्मण शक्ति सारे शरीर मे व्यापक रहती है। गरीर मे जहा-जहा आत्मा है वहां-वहा यह शक्ति निवास करती है । यह शरीर के किसी एक भाग मे केन्द्रित नही रहती, प्रत्युत आत्मा की भाति सारे शरीर मे व्याप्त है और आत्मप्रदेशो के साथ क्षीर-नीर की तरह मिली रहती है।
कार्मण शरीर को सूक्ष्म शरीर भी कहते हैं । यही सूक्ष्म शरीर प्रात्मा को एक योनि से दूसरी योनि मे ले जाने वाला है । माता के गर्भ मे कलल से भ्रूण, भ्रूण से शिशु, युवक व वृद्ध बनाने वाला भी यही है । शरीर-सम्बधी सभी बातो को निर्धारित करने वाला, तथा आत्मा की शक्ति को प्रावृत करके उसके शुद्ध आनन्दस्वरूप को विकृत वनाने वाला भी यही है । इसी के प्रताप से आत्मा काम, क्रोध आदि विभावो मे परिणत होता है।
सूक्ष्म शरीर के सूक्ष्म पुद्गल परमाणुप्रो मे व्यक्ति को पूर्वकृत कर्मो का फल देने वाली शक्ति इस प्रकार अवस्थित होती है, जिस प्रकार विद्य त् यन्त्र बैटरी (Battery) मे विद्यु तशक्ति । जैसे चुंबक की आकर्षण शक्ति द्वारा खिच कर लोहा उसकी ओर चला जाता है,