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प्रश्नों के उत्तर
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यम देवता को प्रसन्न किया जाता है। इसके अतिरिक्त, वैदिक धर्म मे अग्नि से प्रार्थना की जाती है कि हमारे शत्रुग्रों के घर जला । इन्द्र ने अभ्यर्थना की जाती है कि अपने वज्र द्वारा अनुग्रो को मार डाल । ऐसे अनेको उदाहरण उपस्थित किए जा सकते है, जिन से यह प्रमाणित हो जाता है कि वैदिक परम्परा का आधार हिंसा है। इसके अलावा, वैदिक धर्म मे यज्ञ को इतना अधिक महत्त्व दिया गया है कि मानो वह जोवन का एक अनिवार्य अंग हो हो । यज्ञ भी अनेको प्रकार के है | बहुत से यज्ञ ऐसे हैं कि जिनके न करने से पाप लगता है, तो बहुत ने ऐसे है जिनसे मन की कामनाए पूर्ण होती हैं । यदि नरक से बचना इष्ट है तो यज्ञ करना आवश्यक है। यदि धन, पुत्र, राज्यविस्तार, शत्रुनाश या अन्य किसी प्रकार का स्वार्थ पूर्ण करना है तो वह भी यज्ञ से ही सम्पन्न हो सकता है । किसी के प्राण लेने हो तो वह यज्ञ द्वारा लिए जा सकते हैं। इसमें विशेषता यह है कि यज्ञ मे की गई हिंसा भी हिंसा बन जाती है । जो जितने अधिक यज्ञ करता है, उसकी कीर्ति उतनी ही अधिक फैलती है । वहा पाप का प्रश्न ही खड़ा नही होता इस प्रकार मनोकामना भी पूर्ण हो जाती है और धर्म भी हो जाता है ।
इसके विपरीत जैनधर्म का महल अहिसा की नीव पर खड़ा है। अहिसा कहती है कि जिसको तुम कष्ट देना चाहते हो, वह तुम जैसा ही है । . किसी को कष्ट मत दो। जिसे तुम मारना चाहते हो वह तुम जैसा ही है, अतः किसी को मत मारो। जिसे तुम सताना चाहते हो वह तुम जैसा ही है, अत किसी को मत सताओ। जिसे तुम तग करना चाहते हो वह तुम जैसा ही है, अत किसी को - तग मत करो । हिंसा जैनधर्म का प्राण है। गृहस्थ तथा मुनियो के लिए जितने भी व्रत, नियम बनाए गए हैं उनका मूलाधार अहिसा है । असत्य, चोरी,