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-~~~............... प्रश्नों के उत्तर
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वैसे ही जीव इस कार्मण शक्ति द्वारा वर्तमान गरीर को छोड़ कर दूसरी योनि की ओर आकर्षित होता हुआ वहा जा उत्पन्न होता है। इस तथ्य को एक उदाहरण से समझिए ।
कल्पना करो । चुम्बक पत्थर के सामने एक लोहा पड़ा है, और उस पर एक मक्खी वैठी है । जिस समय चुम्बक के आकर्षण से लोहा उसकी ओर आकर्षित होगा, तो लाहे के साथ-साथ उस के ऊपर बैठी मक्खी भी आकर्षित हो जायगी। चुम्बक से आकर्षित हुमा लोहा जिधर को जायगा तो उवर को मक्खी भी खिसकती जायगो । तो जैसे मक्खी को आकर्षित करने वाला तत्त्व परम्परा से वह चुवक पत्थर ही ठहरता है,वैसे ही कार्मणगरीर से युक्त पात्मा को जिस स्थान पर उसे उत्पन्न होना है, उस स्थान मे स्थित परमाणु ही उसे आकर्षित कर लेते हैं । उत्पत्ति स्थान के परमाणुओ का आत्मस्थ कर्म परमाणुओ के माथ ऐसा विचित्र और अवाच्च आकर्षण होता है कि जिसके प्रभाव से प्रात्मा स्वत ही अपने उत्पत्तिस्थान में पहुँच जाता है। कर्मवाद की दृष्टि में प्रात्मा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुचाने वाली शक्ति केवल परमाणुओ और उत्पत्ति स्थान मे अवस्थित परमाणुओ का पारस्परिक आकर्षण ही है। कर्मवाद की मान्यता के अनुसार प्रा मा के परलोक गमन मे कर्म परमाणु हो कारण है,ईश्वर या किसी अन्य दैविक शक्ति विशेष का उससे कोई संबंध नहीं है। परमाणुगो मे एक विलक्षण आकर्षण रहता है ? उसो आकर्षण के कारण परमाणुग्रो द्वारा अनेको ऐसे कार्य सम्पन्न होते हैं, जिन्हे सुन कर एक साधारण व्यक्ति तो विस्मित हो उठता है। परमाणुगो मे कितना विलक्षण प्राकर्पण है ? और यह आकर्पण किस तरह अद्भुत और असभावित कार्य करता है ? इस सवव मे प्रस्तुत पुस्तक के तृतीय अध्याय में प्रकाश डाला गया है । पाठक उसे देखने का कष्ट करे ।