________________
जैन धर्म और वैदिक धर्म
सप्तम अध्याय प्रश्न- जैनधर्म और वैदिक धर्म में प्राचार-विचार-सम्बन्धी क्या मतभेद है? उत्तर- भारत मे मुख्यतया दो सस्कृनियो की प्रधानता रही है-श्रमण सस्कृति और ब्राह्मण सस्कृति । श्रमण सस्कृति को समन और शमन सस्कृति भी कहा जाता है। श्रमण श्रम् धातु से बना है । इसका अर्थ है-परिश्रम करना । यह.अर्थ इस बात को प्रकट करता है कि व्यक्ति अपना विकास अपने ही परिश्रम द्वारा कर सकता है। सुख-दुख, उत्थान-पतन, सभी के लिए वह स्वय उत्तरदायी है । समण शब्द समता भाव का परिचायक है । समता भाव का अर्थ है- सभी को आत्मतुल्य समझना, सभी के प्रति समभाव रखना । दूसरो के साथ कैसा व्यवहार होना चाहिए? इसकी कसौटी अपनी ही पात्मा है। . जो बात अपने को बुरी लगती है, वह दूसरो के लिए भी बुरी है.। "प्रात्मन. प्रतिकूलानि परेपा न समाचरेत्", यह अमर स्वर समता की अन्तरात्मा का है । समाज विज्ञान का यही मूल तत्त्व है । किसी के प्रति राग या द्वेष न करना, शत्रु, मित्र को बराबर समझना, जन्म से जातपात न मानना तथा स्पृश्य या अस्पृश्य आदि भेदो को स्वीकार न करना,समता का अपना स्वरूप है । शमन का अर्थ होता है- अपनी