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प्रश्ना के उत्तर ~ ~ . .. ~~-~उक्त प्रकार की अन्य भी अनेकों प्रागकाएं उपस्थित होती हैं, किन्तु उनका कोई सतोषजनक समाधान नहीं मिलता है। अत. यही मानना सगत पीर उपयुक्त है कि कर्मफल के भुगताने में ईश्वर का कोई हाथ नही है । प्रत्युत कर्म-परमाणु स्वय हो प्राकृतिक नियमो के अनुमार कर्ता को फलानुभव करवा डालते हैं।
जनदर्शन की इस मान्यता का.कि कर्मफल के भुगताने मे ईश्वर का कोई हस्तक्षेप नही है, जैनेतर धर्म शास्त्र श्रीमद् भगवद्गीता मे भी पूरा-पूरा समर्थन मिलता है । वहा लिखा है
न कर्तत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः। । न कर्मफल-सयोगं, स्वभावस्तु प्रवर्तते ।।
- गीता अ०५-१४ अर्थात् ईश्वर न तो ससार की रचना करता है, न जीवां के कर्म वनाता है और न कर्मों का फल ही देता है। किन्तु प्रकृति ही सब कुछ . करती है । तात्पर्य यह है कि जगत के निर्माण में, भाग्यविधान में तथा कर्मफलप्रदान मे ईश्वर का कोई हाथ नही है। मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसका वैसा फल पा लेता है।
नादत्ते कस्यचित् पापं, न चैव सुकृतं विभुः। - अज्ञानेनावृतं ज्ञानं, तेन मुह्यन्ति, जन्तवः ॥
गीता अध्याय ५-१५ अर्थात् किसी का न तो पाप लेता है और न किसी का पुण्य ही लेता है। अज्ञान से आवृत होने के कारण यह जीव स्वय मोह में फस जाते हैं। प्रश्न- ईश्वर यदि कर्मों का फल नहीं देता है तो फिर कर्मफल