________________
प्रश्नो के उत्तर
२७०
सकता है, तो उस शासक मे यह भी शक्ति होती है कि यदि उस को पता चल जाए कि डाकुनों का दल अमुक गाव मे या श्रमुक नगर में अमुक समय डाका डालेगा और लोगो के जीवन-घन को लूटेगा तो उस शासक का कर्तव्य बनता है कि वह डाका डालने के समय से पूर्व ही डाकुओ को डाका डालने से रोके या उन्हें गिरफ्तार करे। यदि शासक जान बूझ कर प्रजा के धन, माल का सरक्षण नही करता है तो वह अपने कर्तव्य की हत्या करता है ।
कर्मफलप्रदाता ईश्वर सर्वज्ञ है, सर्वदर्शी है, सर्वशक्तिसम्पन्न है, और साथ मे परम दयालु भी है । वह जानता है कि अमुक व्यक्ति यह अपराध करेगा और इस समय करेगा। ऐसी दशा मे उस का कतव्य है कि वह अपराधी की भावना को परिवर्तित करदे, अपराध करने का उसने जो निश्चय किया है उसे बदल दे । या उसके मार्ग मे ऐसी बाधाए उपस्थित कर दे कि जिस से वह अपराध कर ही "न सके । इसके विपरीत यदि ईश्वर अपराधी के भावो को जानता है, और अपराध रोकने का सामर्थ्य भी रखता है, परन्तु उसे रोकता नही है, अपराधी को अपराध करने देता है तो मानना पड़ेगा कि वह भा अपने कर्तव्य से भ्रष्ट होता है । ऐसे ईश्वर का कर्तव्यपालक, न्यायगील या दयालु नही कहा जा सकता है ।
Ty
यदि कहा जाए कि ईश्वर ने जीवो को कर्म करने मे स्वतन्त्रता दे रखी है। जीव यथेच्छ कर्म कर सकते हैं, ईश्वर उसमे बाधक नही बनता, तो इसका अर्थ यह हुआ कि ईश्वर जो कर्म फल देता है, उसका उद्देश्य प्राणियो का सुधार नही है, प्रत्युत अपना मनोविनोद या शासन की महत्त्वाकाक्षा पूर्ण करने के लिए वह ऐसा करता है । यदि जन-मन का सुधार करना ईश्वर का उद्देश्य हो, फिर तो वह जीवो को दुष्कर्म करने से पूर्व ही रोक दे । परन्तु वह ऐसा क्यो करे क्योकि
・
A MAN IN A
TAAAAAA