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प्रश्नो के उत्तर
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इसी प्रकार वीतराग प्रभु का स्मरण करने से आत्मा के राग-द्वेष आदि विकारो का गैत्य भी भागने लगता है और आत्मा निज स्वरूप मे आकर अनन्त आनन्द और ज्ञान की अनन्त विभूति से मालामाल हो जाता है। परमात्मा के गुणो के स्मरण व चिन्तन करने का यही सब से बड़ा लाभ है।
दूसरी बात यह भी है कि परमात्मा का नाम इतना पवित्र और सात्त्विक है कि जब कोई व्यक्ति शुद्ध हृदय से उसका चिन्तन करता है, उसके गुणों मे रमण करने लग जाता है, तब उसके मन में कोई विकार उत्पन्न नहीं होने पाता, मन सर्वथा शान्त और निर्विकार बन जाता है, मन एक अनुपम तथा अपूर्व सा उल्लास अनुभव करता है। ऐसी दशा यदि लगातार बनी रहे तो मानव धीरे-धीरे अभ्यास वढा-' ता हुआ एक दिन इतना अभ्यस्त हो जाता है कि उसका मन फिर कभी भी सांसारिक विपयो की ओर नही जाता । और अन्त मे जीवनगत विकारों का सर्वथा खातमा करके परमात्म स्वरूप बन जाता है । अतः जीवन को परमात्म स्वरूप मे लाने के लिए परमात्मा के गुणो के स्मरण या चिन्तन का अभ्यास करना अत्यावश्यक है। और उस अभ्यास को सतत बनाए रखने के लिए परमात्म-स्मरण को दैनिक आवश्यकता होती है। तीसरी बात यह भी है कि मनुष्य जब तक प्रभुस्मरण मे लगा रहता है, परमात्मा के गुण गाता रहता है, कम से कम उतने समय के लिए तो वह पापाचार से बचा ही रहता है । १६ आने गंवाने की अपेक्षा यदि दो आने भी बचा लिए जाए तो वह अच्छा ही है। इसी तरह मन यदि सारा दिन पवित्र नहीं रह पाता है,तो जितने क्षण सात्त्विक और पवित्र बना रहे तो उतना ही अच्छा है, जीवन के उतने ही क्षण सफल होते हैं। इसीलिए भक्तराज कवीर ने कहा है