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प्रश्नो के उत्तर
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बावू ग्रम्बुजाक्ष सरकार एम ए वी एड. लिखते है कि "यह अच्छी तरह प्रमाणित हो चुका है कि जैनधर्म बौद्ध धर्म की शाखा नही है । महावीर स्वामी जैनधर्म के स्थापक नहीं हैं। उन्होने केवल प्राचीन जैनधर्म का प्रचार किया है ।
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इन सव प्रमाणो से स्पष्ट हो जाता है कि जैन धर्म वौद्ध या वैदिक धर्म की शाखा नही है । यह एक स्वतन्त्र धर्म है और ऐतिहासिको की पहुच एव वेद काल के पूर्व से चला आ रहा है । अत. जैन धर्म को वौद्ध धर्म की गाखा कहना या मानना असंगत और इतिहास से भी विरुद्ध है या यो कहिए कि सत्य को झुठलाना है । *
प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास सं. ७५० से १७५०, लेखक डॉ. राम कुमार वर्मा, एम. ए., पी. एच. डी., (प्रयाग विश्वविद्यालय) के सिद्ध साहित्य नामक विभाग में पृष्ट ११८ - ११६ पर लिखा है - "जब वे (मत्स्येन्द्रनाथ ) - सिंहलद्वीप गए तो वहां की रानी पद्मावती के रूप पर आसक्त होकर वहीं रहने लगे, तब गोरखनाथ को अपने गुरु के पतन की गाथा
* जैनधर्म की प्राचीनता को प्रमाणित करने वाले वेदवाक्य तथा ऐनिहासिक जनेतर विद्वानों के अभिमत को और अधिक जानने के अभिलापियो को 'सत्यार्थदर्पण' लेखक - प त्रजित कुमार जैन, शास्त्री, प्राप्तिस्थानमंत्री, साहित्यविभाग, भारतवर्षीय दिगम्बर जैन संघ, चौरासी मथुरा, से प्रकाशित ग्रन्थ को देखना चाहिए।
4 इन का दूसरा नाम मछन्दरनाथ था, ये श्री गोरखनाथ के गुरु माने जाते है ।