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प्रश्नो के उत्तर ...........
२५६ इस से भी अधिक समय क्यों न लगा हो, परन्तु ये समस्त रेगिस्तान, मैदान, पत्थर-पहाड़ आदि के रूप मे परिलक्षित होने वाले पुद्गल स्कन्वो के सघटन-विघटन का ही प्रतिफल है। परमाणुओं के मिलन एवं विछुडन से ही इन सब की पर्यायो मे परिवर्तन आता है । या यो कहिए एक रूप का नाश हो कर दूसरे रूप का निर्माण होता है। और उसका नाग एव निर्माण परमाणुग्रो के मिलने या मिलाने एव अलग करने या अलग कराने पर ही आधारित है। इस परिवर्तन मे किसी ईश्वर की शक्ति का हाथ नहीं है। यह वात वैज्ञानिक प्रयोगशाला मे भी प्रमाणित हो चुकी है। अत हमे प्रत्यक्ष मे परिलक्षित होने वाले सत्य को छोड़कर किसी असत्य कल्पना के चक्कर मे नही पड़ना चाहिए।
हम यह देख चुके है कि परमाणु का अस्तित्व सदा विद्यमान रहा है, रहता है और रहेगा। इसी तरह आत्मा का भी कोई निर्माता नही है। वह भी पुद्गल की तरह द्रव्य की अपेक्षा से नित्य है और पर्याय की अपेक्षा से अनित्य है, परिवर्तनशील है। हम तत्त्व- मीमांसा प्रकरण मे वता पाए हैं कि प्रात्मा का उपयोग-ज्ञान, दर्शन गुण है। यो भी कह सकते हैं कि ज्ञान, दर्शन आत्मा को पर्यायें हैं। और संसारी आत्मा कर्म-बन्धन से मुक्त होने के कारण शरीरधारी है और एक गति से दूसरो गति मे जाता है । और उस का ज्ञान,दर्गत एव शरीर सदा बदलता रहता है और गति की अपेक्षा भी शरीर एव ज्ञानादि पर्यायो मे अन्तर आता रहता है । इस अपेक्षा से आत्मा को कयचित् अनित्य भी कहा है। उसके एक रूप का नाश एवं दूसरे रूप का उत्पाद होता है। जैसे बाल्य रूप का नाश एव युवावय का उत्पाद होता है तथा इसी तरह आयु कर्म के समाप्त होने पर मनुष्य शरीर का नाम एव जिस योनि का आयुष्य वन्ध कर चुका है, उस योनि