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प्रश्नो के उत्तर
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गीली मिट्टी से घरो के बनाने वाले अबोध बालक भी नहीं करते । यदि उनका रेत का घरौदा टेढा मेढा या विकृत प्रतीत होता है, तो वे तुरत उसे विखेर कर नव-निर्माण में लग जाते हैं। परन्तु, जगत का भाग्य अभी तक उसी प्रकार चल रहा है। उसमे कोई सगोधन नही हो पाया; इससे स्पष्ट है कि जगत एव व्यक्तियो के. भाग्य को ईश्वर द्वारा निर्मित मानना, उसको अज्ञानी एवं- सदोष व्यक्त करना है। -...
दूसरे, यदि भाग्य का विधाता ईश्वर है, तो फिर किसी भी व्यक्ति का कोई दोष एव अपराध नही माना जाएगा। क्योकि वे जो कुछ बुरा-भला करते हैं, वह भाग्य के अनुसार करते है,और उस भाग्य का विधाता ईश्वर है। अत जैसा ईश्वर उनसे कराता है, वैसा ही वे कर देते हैं। इसलिए कोई व्यक्ति चोरी करता है, कोई ब्लैकमार्केट करता है, कोई व्यभिचार करता है, कोई छल कपट करके अपना स्वार्थ साधता है, इस तरह अनेक पाप एव दोषयुक्त कार्य कराने वाला ईश्वर है । इससे जोवन मे एक तरह से अव्यवस्था एव उच्छृ खलता आ जाएगी। दुराचारो व्यक्ति निश्शक भाव से दुष्कार्यो मे प्रवृत होगे और उस उद्देण्डता के लिए ईश्वर के नाम की भी दुहाई देंगे। इस तथ्य को एक उदाहरण से समझिए
. कल्पना करो, एक पापी है, उससे किसी ने पूछा-भाई ! तू यह पाप कर रहा है, तुझ परम पिता परमात्मा का कोई डर नही है ? नहीं जानता कि परमात्मा के दरबार मे तेरी जब जाच पड़ताल होगी और जाच पड़ताल मे जब तेरा पाप सामने आयगा तो परमात्मा तुझ पर रुष्ट होगा, और तुझे दण्डित करेगा। पता नही, तुझे वह नरक मे भेज दे, या कुत्तो की योनि मे डाल दे । अत'कुछ विचार कर और इस पाप कर्म का परित्याग कर।'
यह सुनते ही पापी ने उत्तर दिया। वह बोला- भाई !तू पागल