________________
प्रश्नों के उत्तर
{
मुझ से क्या पूछते हो ? आप तो अन्तर्यामी है। ग्राप से क्या छिपा है ? यह सब आप की ही कृपा है, ग्राप ही तो इस तकदीर (भाग्य) को बनाने वाले हो ? फिर उसका उत्तरदायित्व किमी दूसरे पर थोडा या सकता है ? इसके तो श्राप ही जवाबदार है | सुसार मे जो भी पाप होते हैं, वे सब आपके प्रदेश से ही होते हैं, क्योंकि आप ने ही तो उस तकदीर को बनाया है । जब तकदीर बनाने वाले ग्राप है तो दोष किसका ? जो कुछ भी है, वह सव प्रापका ही है ।
>
7
भाव यह है कि यदि ईश्वर को भाग्य का विधाता मान लिया जायगा तो संसार मे फैल रहे पाप का मूल परमात्मा को मानना पड़ेगा | विश्व की अराजकता और विषमता की सब जबाबदारी परमात्मा पर ग्रा' जायगी। परमात्मा इस जवाबदारी से बच नही सकता । ऋत. यही मानना उचित और तर्क-संगत है कि परमात्मा भाग्य का विधाता नही है ।
www/www
૨૬૨
w/WW
दूसरी वात, भाग्य को विधाता ईश्वर समभावी है, उसके यहा राग-द्वेष नही रहता है । फिर उसने भाग्य का निर्माण करते समय किसी का भाग्य अच्छा और किसी का भाग्य बुरा क्यों बनाया है ? सब प्राणियों का भाग्य उसे एक जैसा ही बनाना चाहिए था। पर देखा ऐसा नही जाता । देखा गया है कि ससार मे एक तो ऐसा भाग्यशाली है कि लक्ष्मी उसके चरण चूमती है, गगनचुंबी अट्टालिकाओ मे रंमणियो के साथ वह आनन्द लूटता है और एक ऐसा भाग्यहीन है कि भूखो मरता है, दिन-रात परिश्रम करने पर भी, दिन-रात एक कर देने पर भी खाली पेट ही रहता है । अपन परिवार का तो क्या, प्राराम के साथ अपना पेट भी नहीं भर पाता है । बेचारा भूखा सोता है, भूख की आग से झुलसा हुआ तडप-तड़प कर जीवन खो बैठता है । वीतरागी और समभावी ईश्वर के दरबार में यह ऋधेर क्यो ? यदि कहा जाए कि यह