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चतुर्थ अध्याय
१२वे तीर्थंकर वनेंगे । इसके अतिरिक्त इतिहास इस बात का साक्षी है । समकालीन एव बाद मे हुए जैन
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था कि श्री कृष्ण भी भविष्य मे अनेकानेक जैन राजा हुए हैं, फिर भी, भगवान महावीर के राजाओ का उल्लेख कर देना उचित प्रतीत होता है ।
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राजा चेटक भ० महावीर के अनन्य श्रद्धालु श्रावक एवं वैशाली के प्रत्यन्त प्रभावशाली श्रौर वीर राजा थे । ये १८ देशो के गणराज्य के अध्यक्ष थे । इन की प्रतिज्ञा थी कि में अपनी कन्याओ का विवाह केवल जैनधर्मानुयायी राजाओ के साथ ही करूंगा. किसी अजैन के साथ नही । सिन्धु के उदयन, ग्रवन्ती के चन्दप्रद्योतन, कौशास्त्री के शतानीक चम्पा के दधिवाहन और मगध के श्रेणिक राजा महाराज चेटक के दामाद थे । ये सभी राजा जैनधर्म के अनुयायी थे । राजा उदयन ने तो भगवान महावीर के पास दीक्षा स्वीकार करके जैनधर्म के प्रचार में सक्रिय सहयोग दिया था ।
इतिहास प्रसिद्ध मगधन रेग विम्वसार जैन साहित्य मे श्रेणिक के नाम से विख्यात रहे है । जैन शास्त्रो मे इन का जीवनवृत्त उपलव्ध होता है । इन को जैन बनाने वाले अनाथी मुनि थे । अनाथी मुनि के सदुपदेश से इन्होने जैन धर्म को स्वीकार किया था । इन के पुत्र सम्राट् कूणिक भी भगवान महावीर के अनन्य भक्त थे। यह भगवान महावीर का समाचार प्राप्त करके ही भोजन ग्रहण करता था । कूणिक के पुत्र प्रजातशत्रु ने भी जैनधर्म को स्वीकार किया था ।
काशी- कौशल के अठारह लिच्छवी और मल्लि राजाश्रो ने भगवान महावीर का निर्वाण-उत्सव मनाया था । उनके द्वारा प्रसारित वोर- निर्वाण-उत्सव आज दीपमाला के रूप मे मनाया जाता है । ये सव राजा भी जैनधर्म को मानने वाले थे ।