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प्रश्नो के उत्तर
महावीर को ग्रास्तिक शिरोमणि कहा है। * इससे स्पष्ट हो जाता है कि जैन दर्शन ग्रास्तिक दर्शन है और उसकी प्रास्तिकता सब दर्शनों से उत्कृष्ट है । आत्मा एव लोक-परलोक के सवध मे जैन चिन्तको ने जितनी गहराई से चिन्तन-मनन एव ग्रन्वेषण करके प्रकाश डाला है, उतना गहरा विचार किसी भी दार्शनिक ने नही दिया । इसलिए ग्राज भी सभी निष्पक्ष विचारक जैन दर्शन को ग्रास्तिक दर्शन के रूप मे स्वीकार करते है । और गाधी वादी नेता काका कालेलकर तो जैन दर्शन को एक उत्कृष्ट ग्रास्तिक दर्शन और भगवान महावीर को आस्तिक गिरोमणि मानते हैं । प्रश्न- ग्रास्तिक-नास्तिक शब्द व्याकरण सम्मत परिभाषा के अनुसार ही साहित्य में प्रयुक्त होते रहे हैं या श्रागे चलकर उन में कुछ परिवर्तन हुआ हैं ? यदि परिवर्तन हुआ है, तो परिवर्तन आने का वास्तविक कारण क्या रहा है ?'
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उत्तर- इस प्रश्न का समाधान पाने के पहले हमे शब्द और व्याकरण के सबध को भी भली-भांति समझ लेना चाहिए। यह बात हमे सदा ध्यान में रखनी चाहिए कि व्याकरण शब्दों को परिष्कृत करता है, न कि उनकी रचना । प्रत्येक भाषा का यही नियम है कि उसके उच्चारण एव प्रयोग के रूप को व्यवस्थित करना व्याकरण का काम है । इस से यह स्पष्ट होता है कि शब्द का निर्माण व्याकरण से नही, बल्कि जनता की बोल-चाल की भाषा से होता है । व्याकरण केवल इतना ही काम करता है कि जनता या साहित्यिको के द्वारा जिस शब्द का श्रमण, वर्ष ७, अंक १२ ।