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पश्चम अव्या...harrrrrrrrrrrrrx
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इस कथन को सुन कर गौतम स्वामी को भी भगवान साथ के किए गए पूर्व जन्मो का तथा उनके साथ रहे हुए सवध का परिज्ञान हो गया ।*
इस तरह पुनर्जन्म की मान्यता को प्रमाणित करने वाले प्रागमो मे अनेक उद्धरण मिलते है । इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि जैन दर्शन अात्मा, परलोक, पुनर्जन्म आदि को मानता है । इसलिए वह नास्तिक दर्शन नही, आस्तिक दर्शन ही है । पाश्चात्य एव भारतीय विद्वान तथा विचारक भी जैन दर्शन को आस्तिक दर्शन के रूप मे स्वीकार करते हैं । सन् १९५५ की महावीर जयन्ती के अवसर पर दिल्ली मे आयोजित एक सभा मे भगवान महावीर के जीवन पर प्रकाग डालने हुए भारत के प्रसिद्ध विद्वान, सर्वोदयी विचारक काका कालेकर ने स्पष्ट शब्दो मे कहा है
"जिस जमाने मे कही-कही मनुष्य का मास खाने वाले लोग भी थे, मनुष्य को गुलाम बना कर बेचा जाता था, सेनाओं के बीच युद्ध होते थे और पशु मास का आहार तो सार्वजनिक था। ऐसे समय मे पानो और हवा मे जो सूक्ष्म जन्तु होते है, उन के प्रति आत्मीयता बतलाना और विश्व मे अहिसा की स्थापना करने का अभिप्राय रखना तथा यह विश्वास रखना कि इतनी व्यापक अहिंसा भी मनुष्य का हृदय कवूल करेगा और किसी दिन उसे सिद्ध भी करेगा-यह उच्चकोटि की आस्तिकता है। ईश्वर पर या शास्त्र पर विश्वास रखना गौण है । मनुष्य हृदय पर विश्वास रखना कि वह विश्वात्मैक्य की ओर अवश्य वढेगा ! यह सब से वडी आस्तिकता है। इसलिए मैंने भगवान * चिरससिठ्ठोऽसि मे गोयमा | चिरपरिचियोऽसि मे गोयमा..
-श्री भगवती सूत्र, शतक १४,उद्देशक ७ ।