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आस्तिक नास्तिक समीक्षा
पञ्चम अध्याय
प्रश्न- आस्तिक और नास्तिक शब्द का व्याकरण सम्मत क्या अर्थ होता है ? उत्तर- भारतीय चिन्तन वारा दो भागों में विभक्त है- १ आस्तिक और नास्तिक । कुछ चिन्तनशील विचारक, दार्शनिक आत्मा और परलोक के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं तथा आयु कर्म समाप्त होने के बाद प्रात्मा एक गति के शरीर को त्याग कर दूसरी गति या योनि के शरीर को धारण करती है, इस बात मे विश्वास करते हैं और उसे आगम,तर्क एव अनुभव से प्रामाणिक मानते हैं। ऐसी मान्यता मे श्रद्धा रखने वाले विचारको को दार्शनिक भाषा मे आस्तिक कहते हैं और जो विचारक आत्मा एव परलोक के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते, उन्हे नास्तिक कहते हैं। फलितार्थ यह निकला कि आत्मवाद मे विश्वास रखने वाले दार्शनिक आस्तिक कहलाते है और अनात्मवाद को आधार मान कर चलने वाले विचारक नास्तिक कहलाते हैं । उक्त उभय शब्दो की व्याख्या करते हुए वेयाकरणिको ने भी यही बात कही है । शाकटायन का व्याकरण बहुत प्राचीन माना जाता है। पाणिनीय ने अपने द्वारा रचित व्याकरण मे शाकटायन व्याकरण के प्रमाण दिए है । आचार्य शाकटायन लिखते हैं