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प्रश्नों के उत्तर
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प्रवाह में प्रवहमान लेखक जैनधर्म पर प्रहार करते हुए जरा भी सकोच नही करेंगे । अत जैनो को प्रत्येक ग्रसत्य का - चाहे उसे कितने ही बड़े विद्वान क्यो न कहे गए हो स्पष्ट शब्दो मे विरोध करना चाहिए । जनता एव पाठको के सामने सत्य को रखते हुए हमे जरा भी डरना नही चाहिए।
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यह स्पष्ट है कि वर्मा जी ने भगवान पार्श्वनाथ श्री नेमिनाथ के सबध मे जो कुछ लिखा या उद्धृत किया है, वह सर्वथा असत्य है, ऐतिहासिक दृष्टि से भी उसमे ज़रा भी सत्यता को अवकाश नही है । आशा है, वर्मा जी उस पर निष्पक्ष दृष्टि से सोचेंगे और ऐतिहासिक विद्वान एव रिसर्च स्कॉलर होने के नाते अपनी भूल को सुधारने का प्रयत्न करेंगे ।
उत्तर
प्रश्न- जैनधर्म के धारक वैश्य लोग ही हैं या इसके पालक राजा लोग भी थे ? भारत के प्रचीन इतिहास में किसी ऐसे राजा का नाम बता सकते हो, जो जैनधर्म का अनुयायी रहा हो ? जैन जगत का विश्वास है कि भगवान ऋषभ देव से ले कर महावीर पर्यन्त चौवीसो तीर्थकरो का जन्म राजवंशो मे ही हुआ था । प्रत्येक तीर्थकर के काल मे अनेकानेक जैन राजा भी हुए, चक्रवर्ती भी हुए, जिन्होने जैन धर्म मे दीक्षा ली थी और जैनधर्म के प्रचार एव प्रसार में सहायता प्रदान की थी । मर्यादापुरुषोत्तम राम और त्रिखण्डाधिपति कृष्ण भी जैन थे। राम ने जैन साधु वन कर मुक्ति प्राप्त की थी और कृष्ण के छोटे भाई गजसुकुमार भगवान नेमिनाथ के चरणो मे दीक्षित हुए थे। कृष्ण ने स्वय गजसुकुमार को भगवान नेमिनाथ के पास जैन साधु वनवाया था। भगवान नेमिनाथ ने वताया