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चतुर्थ अध्याय
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तक नहीं करते ।
रात्रि को भोजन नही करते और न रात को पानी ही पीते है ।
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से भी परहेज नही करते ।
रात्रि भोजन या पानी आदि पीने
पर कोई प्रतिवन्ध नही है |
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इस तरह दोनो सम्प्रदायो मे आचरण सवधी वहुत बड़ा अन्तर मिलता है | इसके अतिरिक्त दोनो सम्प्रदायों की सैद्धान्तिक मान्यताओ मे, भी, एक रूपता या समानता नही है ।
जैन धर्म
बौद्ध धर्म क्षणिकवाद को मानता है ।
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अनेकान्तवाद को मानता है । जीव, जीव, पुण्य-पाप आदि नव-तत्त्व को मानता है । ग्रात्मा के कर्ममन से रहित नित्तान्त शुद्ध स्वरूप को मोक्ष
दुख, आयतन, समुदाय और मार्ग इन चार को मानता है । श्रात्मा के अस्तित्व के नाँग को मोक्ष स्वीकार किया है 1, मोक्ष ग्रर्थात् शून्य अवस्था |
माना है ।
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इस तरह आचार सवधी एव सैद्धांतिक मान्यताथो मे दोनो परपरात्रो मे बहुत अन्तर है और इसी के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि जैन धर्म वौद्ध धर्म से सर्वथा भिन्न है । इस के अतिरिक्त आधुनिक विद्वानो ने भी जैन धर्म को स्वतन्त्र धर्म माना है और उसे वौद्धधर्म से पहले का स्वीकार किया है ।
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लोकमान्य प० बालगंगाधर तिलक अपने केसरी समाचार पत्र मे लिखते हैं, "महावीरस्वामी जैनधर्म को पुन प्रकाश में लाए, इस बात को ग्राज २४०० वर्ष बीत चुके है । वौद्ध धर्म की स्थापना के पहले भी जैनधर्म भारत मे फैला हुआ था, यह वात विश्वास करने योग्य है । २४ तीर्थंकरो मे महावीर स्वामी अन्तिम तीर्थकर थे । इस से भी जेन धर्म की प्राचीनता जानी जाती है ।
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