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तृतीय अध्याय
जल्दी पका लिया जाता है, उसी प्रकार बधे हुए कर्मो को भी नियत काल से पहले भोगा जा सकता है । सामान्यत नियम यह है कि जिस कर्म का उदय चल रहा है, उस कर्म के सजातीय कर्म की ही उदीरणा की जा सकती है।
- : “८ उपशमन - ...
वंधे हुए कर्म की ऐसी अवस्था बना देना जिसमे कर्म का उदय और उदीरणा न हो सके, परन्तु उद्वर्तन, अपवर्तन और सक्रमण हो सकता है तथा उपशमन काल के समाप्त होते ही वह कर्म उदय 'मे आकर फल देना शुरु कर देता है।
निधति __ कर्म की ऐसी अवस्था जिसमे उदीरणा एव सक्रमण नही होता, परन्तु उद्वर्तन और अपवर्तन तो उसमे भी हो सकता है। '
१० निकाचित । कर्म बंध की वह स्थिति,जिसमे उद्वर्तना,अपवर्तना,उदीरणा और सक्रमणं कुछ नहीं होता है । जिस कर्म को जिस रूप में बाधा है, उसी रूप मे फल भोगना निकाचित कर्म कहलाता है।'
कर्म की अवस्थाओं का इतना व्यवस्थित वर्णन अन्य किसी दर्शन में नही मिलता है । कुछ अवस्थाओ का वर्णन मिलता है। योग-दर्शन 'मे नियत विपाकी कर्म की व्याख्या निकाचित के सस्मान ही की गई है। और उसमे कही गई आवापगमन प्रक्रिया को सक्रमण के साथ तुलना कर सकते हैं। योगदर्शन मे कुछ अनियत विपाकी कर्मो का भी उल्लेख मिलता है, जो फल दिए विना ही नष्ट हो जाते हैं, उनकी
$ पातञ्जल योग दर्शन, २,४।
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