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प्रश्नों के उत्तर
"तुलना जैनों के प्रदेशोदय के साथ ही की जा सकती है। कर्म फल का संविभाग
कुछ विचारकों की यह मान्यता है कि एक व्यक्ति द्वारा किए गए कर्म का फल दूसरे व्यक्ति को मिलता है। वैदिक परंपरा में यह मान्यता रही है कि मृत व्यक्ति के पीछे उसके नाम से दिए जाने वाले दान का फल उसे मिलता है । वौद्ध भी इस बात को मानते हैं। उन्होंने भी प्रत योनि को माना है । अतः उसके नाम से किए गए दानादि का फल उसे मिलता है । परन्तु यह फल उसे प्रेत योनि मे ही मिलता है, यदि वह देव योनि मे हो तो वह फल कर्ता को ही मिलेगा । राजा मिलिन्द के एक प्रश्न का क्या प्रेत को अकुशल - पाप कर्म का भी फल मिलता है ? उत्तर देते हुए नागसेन ने कहा है कि नही, पाप कर्म करने की प्रेत की अनुमति नही होने से उसे पाप कर्म का फल नही मिलता है । इस से भी उसे सतोष नही हुआ, तव नागसेन ने कहा पाप कर्म परिमित होता है, इसलिए उसका सविभाग नही हो सकता और कुशल - पुण्य कर्म अपरिमित होता है, इस कारण उसका सविभाग हो सकता है | $ जैनागमों की यह मान्यता रही है कि कर्म का फल कर्ता को ही मिलता है । क्योकि आत्मा ही दुःख-सुख की कर्ता है और वही उस कृत कर्म के फल की भोक्ता है । * शुभ या अशुभ किसी भी कर्म फल का संविभाग नही होता है । जैनागमो मे यह स्पष्ट कहा है कि जो व्यक्ति कर्म करता है, उसके फल का किसी मे विभाजन नही होता है, फल भोग के
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+ विशेष जानकारी के लिए देखें-कर्म ग्रन्थ (हिन्दी अनुवाद, प सुखलाल संघवी ) भाग १ से ६ |
६ मिलिन्द प्रश्न, ४, ८, ३०-३५ पृष्ठ २८८ ।
* उत्तराध्ययन सूत्र, २०, ३७ ।
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