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प्रश्नों के उत्तरं
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जिनेश्वर भगवान ऋषभदेव कैलाश पर्वत पर मुक्ति को प्राप्त हुए । § शिव पुराण के प्रस्तुत श्लोक मे ऋषभदेव के लिए जिनेश्वर विगेंपण का प्रयोग किया गया है और जिनेश्वर शब्द जैन तीर्थकर या अर्हत के लिए प्रयुक्त होता है। जैनो की मान्यता के अनुरूप ही शिवपुराण मे भगवान ऋषभदेव का निर्वाण कैलाश पर्वत पर माना गया है । इस संबध मे जैन साहित्य एव शिव पुराण दोनो में एक 'समान उल्लेख मिलता है ।
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भारतीय साहित्य में 'योगवशिष्ठ' ग्रंथ का महत्वपूर्ण स्थान है । इस ग्रन्थ मे वैशिष्ठ जी ने भगवान राम को धर्मोपदेश दिया है । उक्त ग्रन्थ मे एक स्थान पर भगवान राम की ग्रान्तरिक कामना का चित्रण करते हुए भगवान राम के मुख से कहलाया है कि "मैं राम नही हूं । मुझे किसी वस्तु की चाह नहीं है । मेरी अभिलापा. तो यही है कि जिनेश्वर देव की तरह अपनी आत्मा मे शान्ति लाभ प्राप्त करू
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इससे स्पष्ट हो जाता है कि जैनधर्म - भगवान राम से भी पूर्व मे विद्यमान था । यदि भगवान राम के समय मे या उसके पहले जिने -- श्वर भगवान का अस्तित्व नही होता, तो राम के मन मे उनका स्मरण करने की भावना ही - कैसे जगती ? परन्तु राम के मन मे जिनेश्वर भगवान को तरह शान्ति प्राप्त करने की जो भावना उबुद्ध हुई, उस
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S कैलाश पर्वते रम्ये, वृषभोऽय जिनेश्वर । चकार स्वावतार'च, सर्वज्ञ. सर्वग. शिवे ||
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1- शिवपुराण, ५९ ।
* नाहं रामो न मे वाञ्छा, भावेषु न मे मनः । --
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शान्तिमाम्यातुमिच्छामि, स्वात्मन्येव जिनो यथा ।।
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योगवशिष्ठ ।