________________
२०१
तृतीय अध्याय
समय कोई भी सवधी साथ नही देता है। यह हम प्रत्यक्ष मे देखते हैं कि प्राय. रोगी औषध ग्रहण करने पर स्वस्थ हो जाता है और अपथ्य सेवन करने से और ज्यादा बीमार हो जाता है। इस तरह औषधि और अपथ्य का फल वही पाता है । परन्तु ऐसा कभी नही होता कि एक व्यक्ति के औषध सेवन या अपथ्य सेवन से दूसरे व्यक्ति का रोग नष्ट हो जाए या बढ़ जाए । इसी तरह स्वय के किए हुए कर्म का फल स्वय को ही भोगना होता है, उसका जरा भी विभाग नही होता । यदि दूसरे द्वारा किए गए शुभ कर्म का फल जन्मन्तर मे मिलने लगे तो फिर किसी भी व्यक्ति को शुभ कर्म करने की आवश्यकता ही नही रहेगी । अपने कुटुम्बी जनो द्वारा कृत शुभ कर्म के फल से वह परलोक मे दु खो से मुक्त हो जाएगा । इस तरह व्यक्ति के द्वारा कृत अशुभ कर्म व्यर्थ हो जाएगा और फिर धर्म-कर्म करने की भी कोई आवश्यकता नहीं रहेगी । अत यह मानना गलत है कि एक व्यक्ति द्वारा कृत कर्म का फल दूसरे व्यक्ति को मिलता है।
- सिक्खों के गुरु सन्त नानक ने भी इस बात को उचित नही माना है। उनके जीवन का एक प्रसंग है कि एक बार वे नदी में स्नान कर रहे थे। स्नान कर चुकने के बाद उन्होने अपनी अजली में नदी का पानी भर कर अपने खेतो की ओर फेकना शुरु कर दिया । यह प्रक्रिया एकाध घण्टे तक चलती रही। लोग देखकर हैरान रह गए । वे सोचने लगे-आज गुरु जी को क्या हो गया है । उन्होंने इस तरह पानी फैकने ' का कारण पूछा तो गुरु जी ने बताया कि मैं अपने खेतो को पानी दे
। मसारमावन्न परस्स अट्ठा, साहारण ज च करेइ कम्म, .. .. --- कम्मस्स ते तस्स उ वेयकाले,ण बधवा वधवय उति ।
-उत्तराध्ययन मूत्र, ४,४.
~
~
~
~
~
Chinmart. wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww