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प्रश्नों के उत्तर
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की दर्शन मोह श्रौर चारित्र मोह दो प्रकृतिया मे परस्पर सक्रमण नही होता है । शेप कर्मों की उत्तर प्रकृतियां में सक्रमण की भजना है अथवा सक्रमण होता भी है और नही भी । कारण यह है कि ५ ज्ञानावरण, ९ दर्शनावरण, १६ कषाय, मिथ्यात्व, भय, जुगुप्सा, तैजस, कार्मण, वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और ५ अतराय, ये ४७ ध्रुव बन्ध की उत्तर प्रकृतिया है, इनमे अपने-अपने कर्म की उत्तर प्रकृतिया मे सदा-सर्वदा परस्पर सक्रमण होता है । परन्तु प व वन्व की प्रकृतियां के लिए ऐसा नियम है कि वे अपनी-अपनी मूल प्रकृतिया से भिन्न जो उत्तर प्रकृतिये हैं, उनमें जो श्रवव्यमान प्रकृतियें है,उनका वध्यमान प्रकृतिया में सक्रमण होता है, परन्तु वध्यमान प्रकृतिया का श्रवव्यमान प्रकृतियां मे सक्रमण नहीं होता । इसलिए ऐसा कहा गया कि उत्तर प्रकृतिया मे सक्रमण की भजना है । 8.
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६ उदय
आत्मा के साथ ग्रावद्ध कर्म जव फल प्रदान करता है, तब उसे कर्म का उदय कहते हैं । कुछ कर्म केवल प्रदेश उदय वाले होते हैं, वे उदय मे आकर निर्जरा को प्राप्त हो जाते हैं, उनका कोई फल नही मिलता । परन्तु कुछ कर्मो का प्रदेशोदय के साथ विपाकोदय भी होता है, वे कर्म अपना फल प्रदान करके ही निर्जरा को प्राप्त होते है । ७ उदीरणा
आत्मा के साथ आवद्ध कर्मों को नियत काल से पहले उदय में ले आने की प्रक्रिया को उदीरणा कहते हैं । जैसे नियत समय पर पकने वाले फलो को पकने से पहले कच्चे ही तोडकर विशेष प्रक्रिया से
६. विशेषावश्यक भाप्य, १९३९ ।
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