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प्रश्नों के उत्तर
फल देकर नष्ट हो जाता है। कर्म का मुख्य कार्य यह है कि जब तक उसका वध होता रहता है, तब तक जीव को मोक्ष नहीं मिलता है। समस्त कर्मों को निर्जरा करने पर ही जीव मुक्त होता है। .
कर्मों की विभिन्न अवस्थाएं . यह हम देख चुके हैं कि कर्म का वध किस प्रकार का होता है और बधे हुए कर्म अपना फल कैसे देते हैं । जैनों की यह सैद्धान्तिक मान्यता है कि किए हुए कर्मों का फल भोगे विना मुक्ति नहीं होती। परन्तु ऐसा एकांत नियम नही है कि कर्म जिस रूप मे बंधा है, उसी रूप मे फल देता है। उसमे परिवर्तन भी हो सकता है। जनागमो मे कर्म की बंधादि १० अवस्थायो का वर्णन करके कर्म फल में होने वाले परिवर्तन की प्रक्रिया को भी व्यवस्थित रूप दिया गया है। ये दस अवस्थाएं निम्न है-१ बंध, २ सत्ता, ३ उद्वर्तन-उत्कर्षक,४ अपवर्तनअपकर्षक, ५ सक्रमण, ६ उदेय, ७ उदीरणा, ८ उपशमन, ९ निधति और १० निकाचित ।
१बंध " आत्मा के साथ कर्म पुद्गलो का संबंध होना तथा उनका प्रकृति वघ, प्रदेश वध, स्थिति वध, और अनुभाग बंध के रूप में बंधना वध कहलाता है । वध होने पर ही अन्य अवस्थाए होती है, वध के अभाव मे और कोई अवस्था नहीं होती। .
२ सचा .. - - - वधे हुए कर्म समय-पर-उदय मे आते हैं और फल दे कर आत्म प्रदेशो से अलग हो जाते हैं। प्रत्येक कर्म अपना अवाधाकाल पूरा होने __ कडाण कम्माण न मोक्ख अत्यि। -उत्तराध्ययन,४, ३ .
'मातम्या नहा हाता।
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